भाषा, लिपि और व्याकरण का एनिमेटेड बैनर ज्ञ

भाषा, लिपि और व्याकरण

भाषा की दुनिया में आपका स्वागत है! इस गहन गाइड में हम भाषा की परिभाषा, उसकी प्रकृति, विभिन्न प्रकार, लिपि के विकास, और व्याकरण के उन सभी नियमों को गहराई से समझेंगे जो भाषा को एक अनुशासित और सशक्त माध्यम बनाते हैं।

1. भाषा: एक विस्तृत परिचय (Language: A Detailed Introduction)

भाषा मानव सभ्यता का आधार स्तंभ है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारे विचारों, भावनाओं, संस्कृति और ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का सबसे शक्तिशाली उपकरण है। 'भाषा' शब्द संस्कृत की 'भाष्' धातु से बना है, जिसका अर्थ है 'बोलना' या 'वाणी को व्यक्त करना'

भाषा के बिना, मनुष्य और पशु में कोई विशेष अंतर नहीं रह जाता। पशु-पक्षियों की भी अपनी बोलियाँ होती हैं, लेकिन वे सीमित और स्थितिजन्य होती हैं। इसके विपरीत, मानव भाषा रचनात्मक, प्रतीकात्मक और असीम है। हम नए-नए वाक्य बना सकते हैं और अमूर्त से अमूर्त विचारों को भी व्यक्त कर सकते हैं।

“भाषा यादृच्छिक वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है, जिसके द्वारा मानव समुदाय परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करता है।” - डॉ. भोलानाथ तिवारी

भाषा की परिभाषाएँ (Definitions of Language)

विभिन्न भाषाविदों ने भाषा को अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है, जो इसके बहुआयामी स्वरूप को दर्शाते हैं:

  • स्वीट के अनुसार: "ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।" (Language is the expression of ideas by means of speech-sounds.)
  • डॉ. कामता प्रसाद गुरु के अनुसार: "भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकता है।"
  • आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के अनुसार: "विभिन्न अर्थों में संकेतित शब्द-समूह ही भाषा है, जिसके द्वारा हम अपने विचार या मनोभाव दूसरों के प्रति बहुत सरलता से प्रकट करते हैं।"
  • पतंजलि (महाभाष्य) के अनुसार: "व्यक्ता वाचि वर्णा येषां त इमे व्यक्तवाच:" - अर्थात्, जो वाणी वर्णों में व्यक्त होती है, उसे भाषा कहते हैं।
  • फ़र्दिनान्द द सस्यूर के अनुसार: "भाषा संकेतों (signs) की एक व्यवस्था है।" उन्होंने भाषा (Langue) और वाक् (Parole) में अंतर स्पष्ट किया।
  • नोम चॉम्स्की के अनुसार: "भाषा वाक्यों का एक समूह है, जिनमें से प्रत्येक की लंबाई सीमित है और जो तत्वों के एक सीमित समुच्चय से निर्मित है।" उन्होंने 'सार्वभौमिक व्याकरण' (Universal Grammar) का सिद्धांत दिया।

इन सभी परिभाषाओं का सार यही है कि भाषा ध्वनि-प्रतीकों की एक व्यवस्थित संरचना है जो किसी समाज को संचार और चिंतन के लिए एक साझा मंच प्रदान करती है।

भाषा की प्रकृति और विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Language)

भाषा की प्रकृति को समझने के लिए उसकी निम्नलिखित विशेषताओं को जानना आवश्यक है:

  1. भाषा एक अर्जित संपत्ति है, पैतृक नहीं: कोई भी बच्चा भाषा को अपनी माँ के पेट से सीखकर नहीं आता। वह जिस समाज और परिवार में पलता-बढ़ता है, अनुकरण के द्वारा वहीं की भाषा सीखता है। एक भारतीय बच्चे को यूरोप में पाला जाए तो वह वहाँ की भाषा सहजता से सीख लेगा, हिंदी नहीं।
  2. यह एक सामाजिक वस्तु है: भाषा का जन्म, विकास और प्रयोग समाज में ही होता है। समाज से बाहर इसका कोई अस्तित्व नहीं है। यह व्यक्ति की नहीं, बल्कि समाज की धरोहर है।
  3. भाषा परिवर्तनशील और प्रवाहमान है: भाषा किसी बहती नदी की तरह होती है, जो कभी रुकती नहीं। समय, स्थान और जरूरतों के अनुसार इसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं। नए शब्द जुड़ते हैं, पुराने अप्रचलित हो जाते हैं और अर्थों में भी परिवर्तन होता रहता है। जैसे, पहले 'हरिजन' शब्द का प्रयोग एक विशेष वर्ग के लिए होता था, पर आज इसका प्रयोग उचित नहीं माना जाता।
  4. भाषा का एक मानक रूप होता है: किसी भाषा के अनेक क्षेत्रीय रूप (बोलियाँ) हो सकते हैं। उनमें एकरूपता लाने और उसे शिक्षा, साहित्य तथा शासन के योग्य बनाने के लिए एक सर्वमान्य रूप को स्वीकार किया जाता है, जिसे मानक भाषा कहते हैं।
  5. भाषा प्रतीकात्मक होती है: भाषा में उपयोग होने वाली ध्वनियाँ और शब्द किसी वस्तु, क्रिया या विचार का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे स्वयं में वह वस्तु नहीं होते। जैसे 'पेड़' शब्द एक विशेष वनस्पति का प्रतीक है। शब्द और उसके अर्थ का संबंध पारंपरिक और समाज द्वारा स्वीकृत होता है।
  6. यह एक व्यवस्थित प्रणाली है: भाषा यादृच्छिक ध्वनियों का समूह नहीं है। इसकी अपनी एक सुव्यवस्थित संरचना होती है, जिसे व्याकरण कहते हैं। इसकी कई उप-प्रणालियाँ हैं: ध्वनि-व्यवस्था (Phonology), रूप-व्यवस्था (Morphology), और वाक्य-व्यवस्था (Syntax)। वर्णों से शब्द, शब्दों से पद, और पदों से वाक्य बनाने के निश्चित नियम होते हैं।
  7. भाषा का स्वरूप कठिनता से सरलता की ओर होता है: ऐतिहासिक रूप से भाषाएँ जटिलता से सरलता की ओर बढ़ती हैं। जैसे, वैदिक संस्कृत की तुलना में लौकिक संस्कृत और आज की हिंदी अधिक सरल है। संस्कृत के संयुक्त व्यंजन और जटिल रूप-रचना हिंदी में सरल हो गई है।
  8. प्रत्येक भाषा की अपनी संरचना होती है: हर भाषा की अपनी ध्वनि-व्यवस्था, शब्द-रचना और वाक्य-विन्यास होता है जो उसे अन्य भाषाओं से अलग करता है। जैसे, हिंदी में वाक्य-रचना 'कर्ता-कर्म-क्रिया' (राम पुस्तक पढ़ता है) होती है, जबकि अंग्रेजी में 'कर्ता-क्रिया-कर्म' (Ram reads a book) होती है।

भाषा के कार्य (Functions of Language)

भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है, इसके कई महत्वपूर्ण कार्य हैं:

  • सूचनात्मक कार्य: ज्ञान, विज्ञान और समाचारों का आदान-प्रदान करना।
  • अभिव्यक्तिात्मक कार्य: भावनाओं, अनुभूतियों और मनोदशाओं (खुशी, दुःख, क्रोध) को व्यक्त करना।
  • निर्देशात्मक कार्य: किसी से कोई कार्य करने या न करने का आग्रह, आदेश या अनुरोध करना।
  • सामाजिक संपर्क स्थापित करना (Phatic function): संबंधों को बनाने और बनाए रखने में भाषा की अहम भूमिका होती है। 'नमस्ते', 'कैसे हैं?' जैसे वाक्य सूचना देने के बजाय सामाजिक संबंध स्थापित करने का कार्य करते हैं।
  • सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: साहित्य, इतिहास और परंपराओं को भाषा के माध्यम से ही भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता है।
  • चिंतन और विश्लेषण: हम भाषा के माध्यम से ही सोचते, तर्क करते और समस्याओं का समाधान निकालते हैं। भाषा हमारे विचारों को आकार देती है।
  • मनोरंजन और सौंदर्यपरक कार्य: कविता, कहानी, गीत, चुटकुले आदि के माध्यम से भाषा मनोरंजन और सौंदर्य की अनुभूति कराती है।

2. अभिव्यक्ति के आधार पर भाषा के प्रकार (Types of Language based on Expression)

विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के माध्यम के आधार पर भाषा को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है। ये तीनों रूप हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग हैं।

भाषा के तीन प्रकार: मौखिक, लिखित और सांकेतिक मौखिक भाषा लिखित भाषा सांकेतिक भाषा

1. मौखिक भाषा (Oral Language)

जब हम बोलकर अपने विचार व्यक्त करते हैं और दूसरा व्यक्ति सुनकर उन्हें समझता है, तो यह भाषा का मौखिक रूप कहलाता है। यह भाषा का सबसे प्राचीन, स्वाभाविक और सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला रूप है। मनुष्य ने सबसे पहले बोलना ही सीखा था।

  • उदाहरण: आपसी बातचीत, भाषण देना, कहानी सुनाना, टेलीफोन पर बात करना, वाद-विवाद, साक्षात्कार, रेडियो प्रसारण, पॉडकास्ट।
  • गुण: यह स्वाभाविक, सहज और तीव्र होती है। इसमें वक्ता अपने स्वर के उतार-चढ़ाव (अनुतान), हाव-भाव और बलाघात का प्रयोग कर अपनी भावनाओं को अधिक प्रभावशाली ढंग से व्यक्त कर सकता है।
  • सीमाएँ: यह स्थायी नहीं होती। कही गई बात को भविष्य के लिए ज्यों का त्यों सुरक्षित रखना लगभग असंभव होता है। इसमें वक्ता और श्रोता का आमने-सामने होना या एक ही समय पर उपलब्ध होना आवश्यक है।

2. लिखित भाषा (Written Language)

जब हम अक्षरों और चिन्हों (लिपि) की सहायता से अपने विचारों को लिखकर प्रकट करते हैं, और दूसरा व्यक्ति उसे पढ़कर समझता है, तो उसे लिखित भाषा कहते हैं। यह ज्ञान को संग्रहीत करने और उसे देश-काल की सीमाओं से पार भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचाने का सबसे उत्तम माध्यम है।

  • उदाहरण: पत्र लिखना, पुस्तकें, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, ईमेल, वेबसाइट, संदेश (SMS), जीवनी, संस्मरण।
  • गुण: यह स्थायी होती है और ज्ञान को लंबे समय तक सुरक्षित रखती है। यह चिंतन और गहरे, व्यवस्थित विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उत्तम है। इसे बार-बार पढ़ा और समझा जा सकता है।
  • सीमाएँ: इसे सीखने के लिए विशेष प्रयास, शिक्षा और अभ्यास की आवश्यकता होती है। यह मौखिक भाषा की तरह स्वाभाविक नहीं है। इसमें भावनाओं की सटीक अभिव्यक्ति के लिए विराम-चिन्हों पर निर्भर रहना पड़ता है।

3. सांकेतिक भाषा (Sign Language)

जब विचारों का आदान-प्रदान संकेतों, इशारों या शारीरिक हाव-भाव के माध्यम से होता है, तो उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं। हालाँकि, व्याकरणिक दृष्टि से कई भाषाविद इसे भाषा का पूर्ण रूप नहीं मानते क्योंकि इसमें विचारों की सूक्ष्मता और जटिलता को व्यक्त करना कठिन होता है। फिर भी, यह संचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मूक-बधिर समुदाय द्वारा प्रयुक्त 'सांकेतिक भाषा' (जैसे इंडियन साइन लैंग्वेज) केवल इशारे नहीं हैं, बल्कि वे अपने आप में पूर्ण विकसित भाषाएँ हैं जिनका अपना व्याकरण और संरचना होती है।

  • उदाहरण: यातायात पुलिस के इशारे, मूक-बधिर लोगों की वार्तालाप, हाथ हिलाकर अलविदा कहना, अंपायर द्वारा आउट का इशारा करना, सिर हिलाकर हाँ या ना कहना।
  • गुण: जहाँ बोलना या सुनना संभव न हो, वहाँ यह संचार का एकमात्र माध्यम हो सकता है।
  • सीमाएँ: हर विचार या भाव को सामान्य संकेतों में व्यक्त करना संभव नहीं है। यह अस्पष्ट हो सकती है और इसकी समझ सीमित होती है। इसका क्षेत्र बहुत ही सीमित होता है।

3. प्रयोग एवं क्षेत्र के आधार पर भाषा के विविध रूप (Various Forms of Language)

प्रयोग और क्षेत्र के आधार पर भाषा के कई रूप देखने को मिलते हैं, जो इसकी व्यापकता और विविधता को दर्शाते हैं।

1. मातृभाषा (Mother Tongue)

वह भाषा जिसे बच्चा अपने परिवार और अपनी माँ से अनुकरण द्वारा स्वाभाविक रूप से सबसे पहले सीखता है, मातृभाषा कहलाती है। यह व्यक्ति के सोचने, सपने देखने और भावनाओं को सहज रूप से व्यक्त करने का प्राथमिक माध्यम होती है। इसी भाषा में व्यक्ति की मौलिक चिंतन प्रक्रिया आकार लेती है।

2. बोली (Dialect)

भाषा का वह स्थानीय रूप जो किसी सीमित क्षेत्र में आम बोलचाल के लिए प्रयुक्त होता है, बोली कहलाता है। इसमें प्रायः साहित्यिक रचनाओं का अभाव होता है और इसका कोई मानकीकृत व्याकरण या शब्दकोश नहीं होता। यह मुख्य रूप से मौखिक होती है।

उदाहरण: हरियाणवी, मेवाड़ी, भोजपुरी, बुंदेली, बघेली आदि हिंदी की प्रमुख बोलियाँ हैं।

बोली और भाषा में अंतर

आधार बोली (Dialect) भाषा (Language)
क्षेत्र इसका क्षेत्र सीमित और स्थानीय होता है। इसका क्षेत्र विस्तृत, व्यापक और राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय होता है।
साहित्य इसमें साहित्य रचना का अभाव होता है (लोकगीत/लोककथाएँ हो सकती हैं)। इसमें समृद्ध साहित्य (गद्य, पद्य) की रचना होती है।
व्याकरण इसका कोई मानक व्याकरण नहीं होता, रूप बदलते रहते हैं। इसका एक मानक, सर्वमान्य व्याकरण होता है।
लिपि इसकी अपनी कोई लिपि आवश्यक नहीं है। इसकी अपनी सुस्थापित लिपि होती है।
प्रयोग केवल आम बोलचाल और घरेलू संवाद में प्रयुक्त होती है। शिक्षा, शासन, साहित्य, विज्ञान और औपचारिक कार्यों में प्रयुक्त होती है।
सामाजिक प्रतिष्ठा इसे भाषा की तुलना में कम प्रतिष्ठित माना जाता है। इसे सामाजिक और राजनीतिक रूप से अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

3. विभाषा / उपभाषा (Sub-language)

जब कोई बोली भौगोलिक विस्तार, साहित्यिक रचना और व्याकरणिक रूप से विकसित होकर एक बड़े क्षेत्र में बोली जाने लगती है, तो उसे विभाषा या उपभाषा कहते हैं। एक विभाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ आ सकती हैं। जब किसी विभाषा को प्रशासनिक मान्यता मिल जाती है, तो वह भाषा बन जाती है।

उदाहरण: ब्रजभाषा और अवधी, जो पहले बोलियाँ थीं, सूरदास और तुलसीदास जैसे महाकवियों की साहित्यिक रचनाओं के कारण विभाषा के स्तर तक पहुँचीं। पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, राजस्थानी आदि हिंदी की उपभाषाएँ हैं।

4. मानक भाषा (Standard Language)

विभाषा का वह परिनिष्ठित, परिमार्जित और सर्वमान्य रूप जिसे किसी क्षेत्र के शिक्षित वर्ग द्वारा प्रयोग किया जाता है और विद्वानों द्वारा व्याकरणिक रूप से शुद्ध करके शिक्षा, साहित्य, और सरकारी कामकाज के लिए स्वीकृत किया जाता है, मानक भाषा कहलाता है। यह भाषा में एकरूपता लाती है और संचार को सुगम बनाती है।

उदाहरण: खड़ी बोली हिंदी का मानक रूप है, जिसका प्रयोग आज पूरे भारत में शिक्षा, मीडिया और प्रशासन में किया जाता है।

5. राजभाषा (Official Language)

'राजभाषा' का शाब्दिक अर्थ है- राज-काज की भाषा। वह भाषा जिसका प्रयोग किसी देश के सरकारी कार्यालयों, प्रशासन, संसद और न्यायपालिका के कार्यों के लिए कानूनी रूप से किया जाता है, राजभाषा कहलाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अनुसार, "संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।" भारत में, हिंदी संघ की राजभाषा है और विभिन्न राज्य अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषाओं को भी राजभाषा का दर्जा देते हैं।

6. राष्ट्रभाषा (National Language)

वह भाषा जो किसी राष्ट्र के अधिकांश लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है और जो उस राष्ट्र की संस्कृति, पहचान और भावनात्मक एकता का प्रतीक होती है, राष्ट्रभाषा कहलाती है। यह पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है।

यद्यपि हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है और व्यवहार में राष्ट्रभाषा मानी जाती है, लेकिन संवैधानिक रूप से भारत की कोई एक राष्ट्रभाषा घोषित नहीं है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाएँ राष्ट्रीय महत्व की हैं।

7. संपर्क भाषा (Link Language / Lingua Franca)

वह भाषा जो विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों के बीच एक सेतु का काम करती है और उनके बीच संपर्क स्थापित करने में मदद करती है, संपर्क भाषा कहलाती है।

उदाहरण: भारत जैसे बहुभाषी देश में हिंदी एक प्रमुख संपर्क भाषा है जो उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों को जोड़ती है। वहीं, वैश्विक स्तर पर अंग्रेज़ी यह भूमिका निभाती है।

4. लिपि: भाषा का दृश्य रूप (Script: The Visual Form of Language)

लिपि (Script) की परिभाषा

किसी भी भाषा की मौखिक ध्वनियों को स्थायी रूप देने के लिए जिन निश्चित लेखन चिन्हों की व्यवस्था बनाई गई है, उसे लिपि कहते हैं। दूसरे शब्दों में, लिपि भाषा का लिखित और दृश्य रूप है, जो ज्ञान को संचित करने और देश-काल की सीमाओं के पार प्रसारित करने में सक्षम बनाता है।

मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप में अंकित करने के लिए निश्चित किए गए ध्वनि-चिह्नों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।

प्रमुख भाषाएँ और उनकी लिपियाँ

भाषा (Language) लिपि (Script)
हिन्दी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, नेपाली, बोडो, मैथिली देवनागरी
अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश, इतालवी, पोलिश रोमन
पंजाबी गुरुमुखी (भारत में), शाहमुखी (पाकिस्तान में)
उर्दू, अरबी, फ़ारसी, कश्मीरी फ़ारसी-अरबी (नस्तालीक़ शैली)
बंगाली, असमिया बांग्ला (पूर्वी नागरी)
रूसी, बल्गेरियाई, सर्बियाई सिरिलिक (Cyrillic)
तमिल तमिल लिपि
तेलुगु, कन्नड़ क्रमशः तेलुगु और कन्नड़ लिपियाँ (दोनों में बहुत समानता है)
चीनी (मंदारिन) चीनी अक्षर (चित्रलिपि आधारित)
जापानी कांजी, हिरागाना, काताकाना (मिश्रित)

देवनागरी लिपि का विकास और विशेषताएँ

हिंदी की लिपि देवनागरी है। इसका विकास भारत की प्राचीनतम ब्राह्मी लिपि से हुआ है। गुप्तकाल में ब्राह्मी के दो रूप विकसित हुए- उत्तरी ब्राह्मी और दक्षिणी ब्राह्मी। उत्तरी ब्राह्मी से 'सिद्धमातृका लिपि' और फिर 'कुटिल लिपि' का विकास हुआ, जिससे 9वीं शताब्दी के आसपास नागरी लिपि का प्राचीन रूप विकसित हुआ। इसी का परिष्कृत रूप देवनागरी है।

देवनागरी की प्रमुख विशेषताएँ:

  • वैज्ञानिकता: यह दुनिया की सबसे वैज्ञानिक लिपियों में से एक है। इसमें एक ध्वनि के लिए एक ही चिह्न है, जिससे उच्चारण में भ्रम नहीं होता। (अंग्रेजी के 'c' की तरह कभी 'क' और कभी 'स' की ध्वनि नहीं होती)।
  • अक्षरात्मक लिपि (Syllabic/Abugida): यह एक 'syllabic' लिपि है, जहाँ प्रत्येक व्यंजन में 'अ' स्वर अंतर्निहित होता है (जैसे- क् + अ = क)। अन्य स्वरों के लिए मात्राओं का प्रयोग होता है, जो इसे पूर्णतः वर्णानुक्रमिक (alphabetic) लिपियों जैसे रोमन से अलग करता है।
  • बाएँ से दाएँ: यह रोमन लिपि की तरह ही बाएँ से दाएँ लिखी जाती है।
  • शिरोरेखा: शब्दों के ऊपर खींची जाने वाली सीधी रेखा (line) इसकी प्रमुख पहचान है, जो शब्दों को एक साथ बाँधकर रखती है और पाठ को एक सुगठित रूप देती है।
  • उच्चारण और लेखन में एकरूपता: जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है और जो लिखा जाता है, वही पढ़ा जाता है (इसमें रोमन की तरह 'silent letters' जैसे 'knife' में 'k' या 'psychology' में 'p' नहीं होते)।
  • वर्गीकरण की वैज्ञानिकता: वर्णमाला का वर्गीकरण उच्चारण-स्थान (कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य आदि) के आधार पर अत्यंत वैज्ञानिक है।

5. व्याकरण: भाषा का अनुशासन (Grammar: The Discipline of Language)

व्याकरण (वि + आ + करण = भली-भाँति समझना) वह शास्त्र है जो हमें किसी भाषा के शुद्ध स्वरूप और प्रयोग का ज्ञान कराता है। यह भाषा को व्यवस्थित, मानकीकृत और अनुशासित करने वाले नियमों का एक समूह है। व्याकरण के ज्ञान के बिना भाषा अनियंत्रित, अस्पष्ट और भ्रामक हो जाएगी। यह भाषा के लिए एक संविधान की तरह कार्य करता है।

व्याकरण का महत्व (Importance of Grammar)

  • शुद्धता प्रदान करना: व्याकरण भाषा के शुद्ध रूप को बनाए रखता है और हमें लिखने, पढ़ने और बोलने में होने वाली अशुद्धियों से बचाता है।
  • एकरूपता लाना: यह भाषा के विभिन्न रूपों और बोलियों में एकरूपता स्थापित करता है, जिससे वह सर्वमान्य बन पाती है।
  • अर्थ की स्पष्टता: व्याकरण के नियमों का सही पालन करने से वाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है और भ्रम की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। (जैसे- 'रोको मत, जाने दो' और 'रोको, मत जाने दो' में केवल एक अल्पविराम से अर्थ बदल जाता है)।
  • भाषा का विश्लेषण: व्याकरण हमें भाषा की संरचना को वैज्ञानिक ढंग से समझने में मदद करता है।
  • नई भाषा सीखने में सहायक: किसी भी नई भाषा को सीखने के लिए उसके व्याकरण का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है।

व्याकरण के विभाग/अंग (Parts of Grammar)

अध्ययन की सुविधा के लिए व्याकरण को मुख्य रूप से तीन (कहीं-कहीं चार) भागों में बाँटा जाता है, जो भाषा की संरचना के अनुरूप हैं:

  1. वर्ण-विचार (Orthography/Phonology): यह व्याकरण का आधार है। इसके अंतर्गत वर्णों के आकार, भेद (स्वर, व्यंजन), उनके उच्चारण स्थान, बलाघात, अनुतान और उनके संयोजन (संधि) के नियमों का अध्ययन किया जाता है।
  2. शब्द-विचार (Etymology/Morphology): इसमें वर्णों के सार्थक मेल से बने शब्दों की उत्पत्ति, स्रोत, रचना, प्रकार और रूपों का अध्ययन किया जाता है। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, उपसर्ग, प्रत्यय आदि का विवेचन इसी के अंतर्गत होता है।
  3. पद-विचार (Parts of Speech in context): जब कोई सार्थक शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है, तो वह व्याकरण के नियमों में बँधकर 'पद' कहलाता है। इसमें शब्द और पद के अंतर, पद के भेद (संज्ञा, सर्वनाम आदि का पद-परिचय) का अध्ययन होता है। कई विद्वान इसे शब्द-विचार का ही अंग मानते हैं।
  4. वाक्य-विचार (Syntax): यह व्याकरण का अंतिम विभाग है। इसमें वाक्यों की रचना, उनके अंग (उद्देश्य और विधेय), पदक्रम, वाक्यों के भेद (सरल, संयुक्त, मिश्र), और विराम-चिन्हों के सही प्रयोग के नियमों का अध्ययन किया जाता है।

संक्षेप में: भाषा शरीर है तो व्याकरण उसकी आत्मा। लिपि भाषा को लिखने का ढंग है, जबकि व्याकरण भाषा को शुद्ध और अनुशासित करने का शास्त्र है।

6. भाषा की उत्पत्ति और विकास (Origin and Development of Language)

भाषा की उत्पत्ति के प्रमुख सिद्धांत

भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई, यह प्रश्न सदियों से विद्वानों के लिए एक आकर्षक और विवादास्पद विषय रहा है। चूँकि इसके कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए अधिकांश सिद्धांत अनुमानों पर आधारित हैं।

  • दैवी उत्पत्ति का सिद्धांत (The Divine Origin Theory): यह सबसे प्राचीन मान्यता है, जिसके अनुसार भाषा ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया एक उपहार है। भारतीय परंपरा में संस्कृत को 'देववाणी' माना जाना इसी का एक उदाहरण है।
  • संकेत सिद्धांत (The Gesture Theory): इसके अनुसार, मनुष्यों ने पहले इशारों और संकेतों से संवाद शुरू किया, और धीरे-धीरे इन संकेतों के साथ ध्वनियाँ जुड़ती गईं और भाषा का विकास हुआ।
  • अनुकरण का सिद्धांत (The Bow-Wow Theory): यह सिद्धांत मानता है कि भाषा की शुरुआत प्राकृतिक ध्वनियों (जैसे पशु-पक्षियों की आवाजें, नदी का कल-कल) के अनुकरण से हुई।
  • श्रम-ध्वनि का सिद्धांत (The Yo-He-Ho Theory): इस मत के अनुसार, सामूहिक श्रम या भारी काम करते समय निकलने वाली स्वाभाविक ध्वनियाँ (जैसे 'यो-हे-हो') ही संवाद का आधार बनीं।
  • सम्पर्क सिद्धांत (Contact Theory): यह सिद्धांत मानता है कि जब अलग-अलग मानव समूह एक-दूसरे के संपर्क में आए, तो संवाद की आवश्यकता ने एक मिश्रित भाषा को जन्म दिया।

भारत के भाषा-परिवार (Language Families of India)

भारत एक विशाल बहुभाषी देश है, जहाँ की भाषाओं को मुख्य रूप से चार भाषा-परिवारों में वर्गीकृत किया जाता है:

  1. भारोपीय (इंडो-आर्यन) परिवार: यह भारत का सबसे बड़ा भाषा-परिवार है, जिसके बोलने वाले लगभग 78% हैं। इसमें हिंदी, संस्कृत, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, सिंधी, असमिया, उड़िया आदि प्रमुख भाषाएँ शामिल हैं।
  2. द्रविड़ परिवार: यह दूसरा सबसे बड़ा परिवार है, जिसके बोलने वाले लगभग 20% हैं, मुख्यतः दक्षिण भारत में। तमिल (सबसे पुरानी), तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम इसकी प्रमुख भाषाएँ हैं।
  3. ऑस्ट्रिक (आग्नेय) परिवार: इसके बोलने वाले मध्य और पूर्वी भारत के आदिवासी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। संथाली, मुंडारी, हो, खड़िया आदि इसकी प्रमुख भाषाएँ हैं।
  4. चीनी-तिब्बती (नाग) परिवार: इस परिवार की भाषाएँ पूर्वोत्तर भारत (सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम आदि) में बोली जाती हैं। बोडो, मणिपुरी, खासी, गारो, मिज़ो आदि इसकी प्रमुख भाषाएँ हैं।

भारतीय आर्य भाषाओं का विस्तृत ऐतिहासिक विकास

हिन्दी भारोपीय परिवार की एक आधुनिक आर्य भाषा है। इसका विकास संस्कृत से हुआ है, जिसके ऐतिहासिक क्रम को तीन चरणों में बाँटा जा सकता है:

काल समय-सीमा भाषाएँ और स्वरूप प्रमुख विशेषताएँ
प्राचीन भारतीय आर्य भाषा 1500 ई.पू. से 500 ई.पू. वैदिक संस्कृत (वेदों, उपनिषदों की भाषा) और लौकिक संस्कृत (रामायण, महाभारत की भाषा)। अत्यंत जटिल व्याकरण, श्लिष्ट-योगात्मक भाषा, संगीतात्मकता, समृद्ध शब्द-भंडार।
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा 500 ई.पू. से 1000 ई. पालि (प्रथम प्राकृत - बौद्ध धर्म की भाषा), प्राकृत (द्वितीय प्राकृत - जैन धर्म की भाषा), और अपभ्रंश (आधुनिक भाषाओं की पूर्वज)। व्याकरण का सरलीकरण, संयुक्त व्यंजनों का टूटना, वियोगात्मकता की ओर झुकाव।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषा 1000 ई. से अब तक अपभ्रंश के विभिन्न रूपों से हिन्दी, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी आदि का विकास हुआ। विभक्तियों और परसर्गों का विकास, निश्चित पदक्रम, क्षेत्रीय भाषाओं का उदय।

आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है। शौरसेनी अपभ्रंश से पश्चिमी हिंदी (जिसमें खड़ी बोली, ब्रजभाषा आदि हैं), राजस्थानी और गुजराती का विकास हुआ। इसी खड़ी बोली ने आज की मानक हिंदी का रूप लिया है।

7. भाषा और समाज (Language and Society)

भाषा केवल संचार का साधन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक दर्पण भी है। भाषाविज्ञान की वह शाखा जो भाषा और समाज के बीच के जटिल संबंधों का अध्ययन करती है, समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics) कहलाती है।

  • भाषा और पहचान: हमारी भाषा हमारी क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, जातीय और व्यक्तिगत पहचान का एक अभिन्न अंग है।
  • भाषा और वर्ग: समाज के विभिन्न आर्थिक और सामाजिक वर्गों के बोलने के तरीके में अंतर देखा जा सकता है। इसे 'सोशियोलेक्ट' (Sociolect) कहते हैं।
  • भाषा और लिंग: अध्ययनों से पता चला है कि पुरुष और महिलाएँ अक्सर भाषा का प्रयोग अलग-अलग तरीकों से करते हैं, चाहे वह शब्द चयन हो या बोलने का लहजा।
  • कोड-स्विचिंग (Code-switching): जब एक वक्ता बातचीत के दौरान एक भाषा से दूसरी भाषा में सहजता से स्विच करता है (जैसे हिंदी बोलते-बोलते अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग), तो उसे कोड-स्विचिंग कहते हैं। यह आज के शहरी समाज में बहुत आम है।
  • द्विभाषिकता (Diglossia): जब एक समाज में एक ही भाषा के दो अलग-अलग रूपों का प्रयोग अलग-अलग सामाजिक संदर्भों में किया जाता है। एक 'उच्च' रूप (H-variety) औपचारिक अवसरों (साहित्य, शिक्षा) के लिए और एक 'निम्न' रूप (L-variety) अनौपचारिक अवसरों (घरेलू बातचीत) के लिए होता है।

8. विश्व और भारत की भाषाएँ (Languages of the World and India)

विश्व की प्रमुख भाषाएँ

विश्व में 7,000 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही बहुसंख्यक लोगों द्वारा प्रयोग की जाती हैं। यहाँ विश्व की कुछ सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाएँ दी गई हैं (Ethnologue 2023 के अनुसार):

# भाषा (Language) कुल वक्ता (Total Speakers) भाषा परिवार (Family)
1. English (अंग्रेजी) ~1.5 बिलियन भारोपीय
2. Mandarin Chinese (मंदारिन चीनी) ~1.1 बिलियन चीनी-तिब्बती
3. Hindi (हिन्दी) ~609 मिलियन भारोपीय
4. Spanish (स्पेनिश) ~559 मिलियन भारोपीय
5. French (फ्रेंच) ~309 मिलियन भारोपीय
6. Standard Arabic (मानक अरबी) ~274 मिलियन सामी-हामी
7. Bengali (बंगाली) ~272 मिलियन भारोपीय
8. Russian (रूसी) ~255 मिलियन भारोपीय
9. Portuguese (पुर्तगाली) ~263 मिलियन भारोपीय
10. Urdu (उर्दू) ~231 मिलियन भारोपीय

भारत की संवैधानिक मान्यता प्राप्त भाषाएँ

भारत एक बहुभाषी देश है जिसकी भाषाई विविधता अद्वितीय है। भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाओं को आधिकारिक रूप से मान्यता दी गई है। ये भाषाएँ हैं:

असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, और उर्दू।

मूल संविधान में 14 भाषाएँ थीं। बाद में सिंधी (21वें संशोधन, 1967), कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली (71वें संशोधन, 1992), और फिर बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली (92वें संशोधन, 2003) को इसमें जोड़ा गया।

9. हिंदी का वैश्विक परिदृश्य (Global Status of Hindi)

आज हिंदी केवल भारत की ही नहीं, बल्कि विश्व की एक प्रमुख भाषा बन चुकी है। विश्व के कोने-कोने में हिंदी बोलने, समझने और सीखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

  • विश्व भाषा: बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिंदी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है।
  • प्रवासी भारतीय: फिजी, मॉरीशस, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में बड़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग रहते हैं। फिजी में तो हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त है।
  • विश्वविद्यालयों में शिक्षण: विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और रूस जैसे देशों में हिंदी सीखने के प्रति रुचि बढ़ी है।
  • विश्व हिंदी सम्मेलन: हिंदी के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए हर कुछ वर्षों में 'विश्व हिंदी सम्मेलन' का आयोजन किया जाता है, जहाँ दुनिया भर के हिंदी विद्वान और प्रेमी एकत्रित होते हैं।
  • इंटरनेट और मीडिया: इंटरनेट, सिनेमा और संगीत ने हिंदी को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी है। हिंदी फिल्में (बॉलीवुड) और गीत पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

भाषा की सबसे छोटी इकाई क्या है?

भाषा की सबसे छोटी और अविभाज्य इकाई 'वर्ण' या 'ध्वनि' है। वर्ण वह मूल ध्वनि है जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते, जैसे - अ, क्, ख् आदि।

व्याकरण पढ़ना क्यों आवश्यक है?

व्याकरण हमें भाषा को शुद्ध रूप में बोलना, पढ़ना और लिखना सिखाता है। यह भाषा को मानकीकृत और व्यवस्थित बनाता है, जिससे विचारों का आदान-प्रदान स्पष्ट और त्रुटिहीन होता है।

भारत की राजभाषा और राष्ट्रभाषा में क्या अंतर है?

भारत की राजभाषा हिंदी है, जिसका प्रयोग सरकारी कामकाज के लिए किया जाता है। भारत की कोई एक राष्ट्रभाषा घोषित नहीं है; यहाँ सभी प्रमुख भाषाएँ राष्ट्रीय महत्व की हैं।

भाषा और विभाषा में क्या अंतर है?

भाषा बोली का पूर्ण विकसित रूप होता है जबकि विभाषा अर्ध विकसित रूप है। भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है और इसमें प्रचुर साहित्य होता है, जबकि विभाषा का क्षेत्र सीमित होता है।

बोली और उपभाषा में क्या अंतर है?

बोली किसी छोटे क्षेत्र में स्थानीय व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा का अल्प विकसित रूप है। उपभाषा (विभाषा) अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्र में प्रयुक्त होती है तथा उसमें साहित्य रचना भी की जा सकती है।

भाषा की क्या उपयोगिता है?

भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। मनुष्य इसका प्रयोग अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए करता है। लिपि विचारों को लिखकर अभिव्यक्त करने का माध्यम है। व्याकरण भाषा को शुद्ध और विश्वसनीय बनाता है।

भाषा की प्रकृति क्या होती है?

भाषा की प्रकृति निम्नलिखित है- भाषा अर्जित संपत्ति होती है। भाषा अनुकरणजन्य प्रक्रिया है। भाषा सामाजिक प्रक्रिया है। भाषा सतत परिवर्तनशील प्रक्रिया है। प्रत्येक भाषा का एक मानक रूप होता है। भाषा का कोई अंतिम रूप नहीं है। प्रत्येक भाषा की संरचना दूसरी भाषा से भिन्न होती है।


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