कारक की परिभाषा, भेद और उदाहरण
हिंदी व्याकरण में कारक का अर्थ है 'केस'। कारक का अर्थ है 'कारण' या
'कारक'। हिंदी में कारक का प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के साथ किया जाता है।
यह वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम के संबंध को दर्शाता है।
कारक (Case)
कारक संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके
सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक
कहते हैं।
-
बालक ने पुस्तक पढ़ी।
-
मेज पर पुस्तकें रखी हैं।
उपयुक्त वाक्यों में रंगीन शब्द ने, पर कुछ विशेष चिन्ह लगे हैं। ये चिन्ह
संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य शब्दों से संबंध बता रहे हैं। ऐसे शब्द
ही
कारक
कहलाते हैं।
विभक्ति या परसर्ग
कारकों का रूप प्रकट करने के लिए उनके साथ जो शब्द चिन्ह लगते हैं,
उन्हें विभक्ति या परसर्ग
कहते हैं;
जैसे - नें , में ,से , को ।
कारक के भेद
कारक के भेद इस प्रकार हैं :
- कर्ता कारक (Nominative Case)
- कर्म कारक (Objective Case)
- करण कारक (Instrumental Case)
- संप्रदान कारक (Dative Case)
- अपादान कारक (Ablative Case)
- संबंध कारक (Genitive Case)
- अधिकरण कारक (Locative Case)
- संबोधन कारक (Vocative Case)
उपरोक्त कारकों में से कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान और अपादान कारक का
प्रयोग वाक्य में स्वतंत्र रूप से होता है। जबकि संबंध, अधिकरण और संबोधन
कारक का प्रयोग वाक्य में स्वतंत्र रूप से नहीं होता है।
कारक के भेदों को समझने के लिए नीचे दी गई तालिका का अध्ययन करें :
कारक |
चिह्न |
अर्थ |
1. कर्ता |
ने |
काम करने वाला |
2. कर्म |
को |
जिस पर काम का प्रभाव पड़े |
3. करण |
से, द्वारा |
जिसके द्वारा कर्ता काम करें |
4. सम्प्रदान |
को,के लिए |
जिसके लिए क्रिया की जाए |
5. अपादान |
से (अलग होना) |
जिससे अलगाव हो |
6. सम्बन्ध |
का, की, के; ना, नी, ने; रा, री, रे |
अन्य पदों से सम्बन्ध |
7. अधिकरण |
में,पर |
क्रिया का आधार |
8. संबोधन |
हे! अरे! अजी! |
किसी को पुकारना, बुलाना |
कर्ता कारक (Nominative Case)-
क्रिया के करने वाले
को कर्ता कारक कहते हैं। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है। कर्ता कारक की विभक्ति “ने”
होती है। “ने” विभक्ति का प्रयोग भूतकाल की क्रिया में किया जाता है। कर्ता
स्वतंत्र होता है। कर्ता कारक में ने विभक्ति का लोप भी होता है। यह पद
प्रायः संज्ञा या सर्वनाम होता है। इसका संबंध क्रिया से होता है;
जैसे-
- मोहन ने पुस्तक पढ़ी।
- लड़की स्कूल जाती है।
कर्ता कारक का प्रयोग
1. परसर्ग सहित
2. परसर्ग रहित
परसर्ग सहित :
भूतकाल की सकर्मक क्रिया में कर्ता के साथ ने परसर्ग लगाया जाता है।
जैसे :-
- राम ने पुस्तक पढ़ी।
- बालक ने चित्र बनाया।
प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ ने का प्रयोग किया जाता हैं।
जैसे :- मैंने उसे पढ़ाया।
जब संयुक्त क्रिया के दोनों खण्ड सकर्मक होते हैं तो कर्ता के आगे ने
का प्रयोग किया जाता है। जैसे :-
परसर्ग रहित -
(क) भूतकाल की अकर्मक क्रिया के साथ परसर्ग 'ने' नहीं लगता
जैसे-
(ख) वर्तमान और भविष्यत् काल में परसर्ग का प्रयोग नहीं होता;
जैसे :-
- बालक लिखता है।
- जैसे श्याम पढ़ता है (वर्तमान काल )
- नेहा बाजार जाएगी। (भविष्यत् काल)
कर्म कारक (Objective Case)-
जिस वस्तु पर क्रिया का फल पड़ता है, संज्ञा के उस रूप को
कर्म कारक कहते हैं।
इसका विभक्ति-चिह्न ‘को’ है। यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता।
बुलाना , सुलाना , कोसना , पुकारना , जमाना , भगाना आदि क्रियाओं के प्रयोग
में अगर कर्म संज्ञा हो तो को विभक्ति जरुर लगती है। जब विशेषण का प्रयोग
संज्ञा की तरह किया जाता है तब कर्म विभक्ति को जरुर लगती है। कर्म संज्ञा
का एक रूप होता है।
जैसे- मनोज, आशीष को पुस्तक देता है।
रिया समाचार पढ़ती है। उपर्युक्त
वाक्यों में आशीष तथा समाचार कर्म कारक हैं।
करण कारक (Instrumental Case)
संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहते हैं।
इसका विभक्ति चिह्न है से (द्वारा) है।
जैसे-
- चोर पुलिस के द्वारा पकड़ा गया।
- माता जी ने चाकू से आम काटा।
यहाँ चाकू से आम काटने तथा पुलिस के द्वारा चोर पकड़ने का कार्य हो रहा है।
अतः ये करण कारक हैं।
संप्रदान कारक (Dative Case)
संप्रदान का अर्थ है-देना। जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए
उसका बोध कराने वाले संज्ञा के रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न 'के लिए' या 'को' है।
जैसे-
- राकेश मरीज को पैसे दान करता है।
- मेहमानों के लिए पानी ले आओ।
यहाँ मरीज को तथा मेहमानों के लिए संप्रदान कारक हैं।
अपादान कारक (Ablative Case)-
संज्ञा के जिस रूप से अलग होने का बोध हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसका
विभक्ति चिह्न 'से' है। जैसे-
- आँख से आँसू गिरते हैं।
- मोहन सीढ़ी से गिर पड़ा।
- संगीता घोड़े से गिर पड़ी।
यहाँ आँख से, सीढ़ी से और घोड़े से अपादान कारक हैं।
अलग होने के अतिरिक्त निकलने, सीखने, डरने, लजाने अथवा तुलना करने के भाव
में भी इसका प्रयोग होता है।
1. तुलना के अर्थ में- श्री
कृष्ण के नयन कमल जैसे हैं।
2. दूर के अर्थ में- दिल्ली
मुम्बई से दूर है।
3. डरने के अर्थ में- राम
माताजी से डरता है।
4. निकलने के अर्थ में- गंगा
हिमालय से निकलती है।
5. सीखने के अर्थ में-छात्र गुरु से सीखते
हैं।
6. लजाने के अर्थ में -बहू ससुर से लजाती
है।
संबंध कारक (Genative Case)- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य की दूसरी संज्ञा से
प्रकट उसे संबंध कारक कहते
हैं। इसका विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। इसकी
विभक्तियाँ संज्ञा , लिंग , वचन के अनुसार बदल जाती हैं।
जैसे-
- रावण विभिषण का भाई था।
- यह कमला की गाय है।
अधिकरण कारक (Locative Case)- अधिकरण का अर्थ है- आधार या आश्रय संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया
के आधार (स्थान, समय, अवसर आदि) का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ हैं।
जैसे-
- कलाम मेज पर रखी है।
- कमरे में टी.वी. रखा है।
इन दोनों वाक्यों में ‘मेज पर’ और ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है।
संबोधन कारक (Vocative Case)- शब्द के जिस रूप से किसी को संबोधित किया जाए या पुकारा जाए, उसे
संबोधनकारक कहते है और संबोधन
चिह्न (!) लगाया जाता है। जैसे-
- हे राम ! कितनी गंदगी है।
- अरे मोहन ! ईंधर आओ।
विशेष- कभी-कभी नाम पर जोर देकर संबोधन
का काम चला लिया जाता है। वहाँ कारक चिह्न की आवश्यकता ना होती। कभी-कभी
संबोधन संज्ञा के साथ न आकर अकेले ही प्रयुक्त होता है।
जैसे-
- अरे ! आप उठ गए।
- अजी ! इधर मत जाइए।
कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अंतर
इन दोनों कारक में को विभक्ति का प्रयोग होता है। कर्म कारक में क्रिया के
व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या
उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है। जैसे -
- विकास ने सोहन को आम खिलाया।
- मोहन ने साँप को मारा।
- राजू ने रोगी को दवाई दी।
- स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।
करण कारक और अपादान कारक में अंतर
करण और अपादान दोनों ही कारकों में से चिन्ह का प्रयोग होता है। परन्तु
अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है। करण कारक में जहाँ पर से का
प्रयोग साधन के लिए होता है वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया
जाता है। कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक
कहते हैं। लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता
है। जैसे :-
- मैं कलम से लिखता हूँ।
- जेब से सिक्का गिरा।
- बालक गेंद से खेल रहे हैं।
- सुनीता घोड़े से गिर पड़ी।
- गंगा हिमालय से निकलती है।
विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं
विभक्तियाँ स्वतंत्र होती हैं और इनका अस्तित्व भी स्वतंत्र होता है।
क्योंकि एक काम शब्दों का संबंध दिखाना है इस वजह से इनका अर्थ नहीं
होता। जैसे :- ने , से आदि।
हिंदी की विभक्तियाँ विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयोग होकर विकार
उत्पन्न करती हैं और उनसे मिल जाती हैं। जैसे :- मेरा , हमारा , उसे , उन्हें आदि।
विभक्तियों को संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे :- मोहन के घर से यह चीज आई है।
विभक्तियों का प्रयोग : हिंदी व्याकरण
में विभक्तियों के प्रयोग की विधि निश्चित होती हैं।
विभक्तियाँ दो तरह की होती हैं –
- विश्लिष्ट
-
संश्लिष्ट
जो विभक्तियाँ संज्ञाओं के साथ आती हैं उन्हें विश्लिष्ट विभक्ति कहते हैं।
लेकिन जो विभक्तियाँ सर्वनामों के साथ मिलकर बनी होती है उसे संश्लिष्ट विभक्ति
कहते हैं। जैसे:-
के लिए में दो विभक्तियाँ होती हैं इसमें पहला शब्द संश्लिष्ट
होता है और दूसरा शब्द विश्लिष्ट
होता है।
अभ्यास प्रश्न
-
कारक की परिभाषा दीजिए।
-
निम्नलिखित वाक्यों में कारक पहचानिए और उनका नाम लिखिए:
- राम ने खाना खाया।
- मैंने किताब पढ़ी।
- वह स्कूल से आया।
- उसने चाकू से फल काटा।
- मैंने उसे एक पत्र लिखा।
- वह अपने दोस्त के साथ गया।
- वह कमरे में बैठा है।
- यह राम की किताब है।
-
कर्त्ता कारक और कर्म कारक में अंतर स्पष्ट कीजिए।
-
निम्नलिखित वाक्यों को बदलकर उनमें करण कारक का प्रयोग कीजिए:
- उसने पेंसिल से लिखा।
- मैं घर से निकला।
-
निम्नलिखित वाक्यों में अधिकरण कारक पहचानिए:
- वह बगीचे में खेल रहा है।
- किताब मेज पर है।
उत्तर:
-
कारक की परिभाषा:कारक वह व्याकरणिक तत्व
है जो संज्ञा या सर्वनाम के और क्रिया के बीच संबंध स्थापित करता है।
-
कारक पहचान:
- राम ने खाना खाया। (कर्त्ता कारक - ने)
- मैंने किताब पढ़ी। (कर्म कारक - को)
- वह स्कूल से आया। (अपादान कारक - से)
- उसने चाकू से फल काटा। (करण कारक - से)
- मैंने उसे एक पत्र लिखा। (संप्रदान कारक - को)
- वह अपने दोस्त के साथ गया। (सम्प्रयोग कारक - के साथ)
- वह कमरे में बैठा है। (अधिकरण कारक - में)
- यह राम की किताब है। (संबंध कारक - की)
-
कर्त्ता कारक और कर्म कारक में अंतर:
-
कर्त्ता कारक: यह कारक क्रिया को
करने वाले को सूचित करता है। उदाहरण: राम ने खाना खाया।
-
कर्म कारक: यह कारक क्रिया का फल
या परिणाम बताता है। उदाहरण: मैंने किताब पढ़ी।
-
करण कारक का प्रयोग:
- उसने पेंसिल से लिखा। → उसने पेंसिल से लिखा। (करण कारक - से)
- मैं घर से निकला। → मैं घर से निकला। (करण कारक - से)
-
अधिकरण कारक पहचान:
- वह बगीचे में खेल रहा है। (अधिकरण कारक - में)
- किताब मेज पर है। (अधिकरण कारक - पर)
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