रस : रस (Ras) का अर्थ है 'आनंद' या 'भावना', जो काव्य, नाटक या साहित्य के माध्यम से पाठक या दर्शक को प्राप्त होती है। यह भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसमें विभिन्न भावनाओं को दर्शाया जाता है। रस के नौ प्रमुख प्रकार होते हैं, जिन्हें नव-रस कहा जाता है। इनमें शृंगार, वीर, करुण, अद्भुत, हास्य, रौद्र, भयानक, बीभत्स, और शांत रस शामिल हैं। प्रत्येक रस एक विशेष भावना और मनोवस्था का प्रतिनिधित्व करता है, जो पाठक या दर्शक को साहित्यिक अनुभव का आनंद लेने में सहायता करता है।
‘रस’ शब्द की व्युत्पत्ति : 'रस' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत धातु 'रस्' से हुई है, जिसका अर्थ होता है 'स्वाद लेना' या 'आनंद प्राप्त करना'। 'रस्' से 'रस' शब्द बना, जो मूलतः किसी वस्तु के सार, स्वाद या उत्तेजना को दर्शाता है।
साहित्यिक संदर्भ में, 'रस' का अर्थ होता है वह आनंद या भावना जो काव्य, नाटक, या अन्य साहित्यिक कृतियों के माध्यम से पाठक या दर्शक को प्राप्त होती है। यह शब्द भारतीय काव्यशास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और विभिन्न भावनाओं को संप्रेषित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
1. रस्यते इति रसः - इसका अर्थ है कि जो वस्तु अनुभव या स्वाद ली जा सकती है, उसे रस कहा जाता है। इस सूत्र के अनुसार, रस वह तत्व है जो साहित्यिक या नाटकीय कृति में अनुभव किया जा सकता है और जिससे आनंद प्राप्त होता है।
2. रसं हि परमानन्दं प्रापयति इति रसः - इसका अर्थ है कि जो परमानंद (उच्चतम आनंद) की प्राप्ति कराता है, उसे रस कहा जाता है। इस सूत्र के अनुसार, रस वह भावना है जो साहित्यिक कृति के माध्यम से उच्चतम आनंद या भावनात्मक संतोष प्रदान करती है।
रस के चार अंग या अवयव होते हैं-
स्थायीभाव
विभाव
अनुभाव
संचारी भाव अथवा व्यभिचारी भाव
1. स्थायी भाव
स्थायी भाव का अर्थ है वह प्रमुख भावना या मनोवृत्ति, जो किसी व्यक्ति के हृदय में स्थायी रूप से निवास करती है और जिसे प्रकट होने के लिए अवसर की आवश्यकता होती है। स्थायी भाव ही विभिन्न रसों का आधार होते हैं और इन्हीं के प्रकट होने पर रस की अनुभूति होती है। प्रत्येक रस का एक विशिष्ट स्थायी भाव होता है, जो उस रस की पहचान बनाता है। रस में स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गई है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक ही स्थायी भाव रहता है। अतएव रसों की संख्या भी 9 हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है। बाद के आचार्यों ने दो और भावों- ‘वात्सल्य’ और ‘देवविषयक रति’ को स्थायी भाव की मान्यता दी है। इस प्रकार स्थायी भावों की संख्या 11 तक पहुँच जाती है, और तदनुरूप रसों की संख्या 11 हो जाती हैं।
स्थायी भाव | रस (Ras in Hindi) | स्थायी भाव की परिभाषा एवं अर्थ |
---|---|---|
रति | श्रृंगार रस | रति वह स्थायी भाव है जो स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम और आकर्षण को दर्शाता है। यह प्रेम और सौंदर्य का भाव होता है। |
हास | हास्य रस | हास वह स्थायी भाव है जो हंसी और मजाक से उत्पन्न होता है। यह आनंद और खुशी का भाव होता है। |
क्रोध | रौद्र रस | क्रोध वह स्थायी भाव है जो गुस्से और रोष से उत्पन्न होता है। यह उग्रता और आक्रोश का भाव होता है। |
शोक | करुण रस | शोक वह स्थायी भाव है जो दुख और विपत्ति के कारण उत्पन्न होता है। यह पीड़ा और वेदना का भाव होता है। |
उत्साह | वीर रस | उत्साह वह स्थायी भाव है जो साहस और वीरता से उत्पन्न होता है। यह उत्साह और ऊर्जा का भाव होता है। |
आश्चर्य/विस्मय | अद्भुत रस | आश्चर्य वह स्थायी भाव है जो अद्भुत और चमत्कारिक चीजों को देखने से उत्पन्न होता है। यह विस्मय और चकित होने का भाव होता है। |
जुगुप्सा/घृणा | वीभत्स रस | जुगुप्सा वह स्थायी भाव है जो घृणा और अरुचिकर चीजों को देखने से उत्पन्न होता है। यह वितृष्णा और अप्रसन्नता का भाव होता है। |
भय | भयानक रस | भय वह स्थायी भाव है जो डर और आतंक से उत्पन्न होता है। यह डर और असुरक्षा का भाव होता है। |
निर्वेद | शांत रस | निर्वेद वह स्थायी भाव है जो वैराग्य और मानसिक शांति से उत्पन्न होता है। यह तृप्ति और शांति का भाव होता है। |
वत्सलता | वात्सल्य रस | वत्सलता वह स्थायी भाव है जो माता-पिता और संतान के बीच के प्रेम से उत्पन्न होता है। यह स्नेह और ममता का भाव होता है। |
देवविषयक रति/भगवद विषयक रति/अनुराग | भक्ति रस | देवविषयक रति वह स्थायी भाव है जो भगवान के प्रति प्रेम और श्रद्धा से उत्पन्न होता है। यह भक्ति और समर्पण का भाव होता है। |
इनमें से अन्तिम दो स्थायी भावों (वत्सलता तथा देवविषयक रति) को श्रृंगार रस के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है।
रस-निष्पत्ति में स्थायी भाव का महत्त्व: स्थायी भाव ही परिपक्व होकर रस-दशा को प्राप्त होते हैं; इसलिए रस-निष्पत्ति में स्थायी भाव का सबसे अधिक महत्त्व है। अन्य सभी भाव और कार्य स्थायी भाव की पुष्टि के लिए ही होते हैं।
विभाव (Vibhav): वह तत्व है जो स्थायी भाव को प्रकट करता है और रस की अनुभूति कराता है। विभाव दो प्रकार के होते हैं:
आलम्बन विभाव (Alamban Vibhav): आलम्बन विभाव वह होता है जो भाव के केन्द्र में होता है, यानी वह व्यक्ति या वस्तु जिसके कारण भाव उत्पन्न होता है। इसे दो भागों में बांटा जा सकता है:
उद्दीपन विभाव (Uddipan Vibhav): उद्दीपन विभाव वे बाहरी तत्व होते हैं जो भाव को उद्दीप्त करते हैं, यानी वे परिस्थितियाँ या वस्तुएं जो भाव को जागृत या प्रबल करती हैं। उदाहरण के लिए:
श्रृंगार रस (Shringar Ras):
वीर रस (Veer Ras):
करुण रस (Karun Ras):
हास्य रस (Hasya Ras):
रौद्र रस (Raudra Ras):
अद्भुत रस (Adbhut Ras):
भयानक रस (Bhayanak Ras):
बीभत्स रस (Bibhats Ras):
शांत रस (Shant Ras):
विभावों के माध्यम से ही स्थायी भाव जागृत होते हैं और रस की संपूर्ण अनुभूति होती है।
श्रृंगार रस
हास्य रस
रौद्र रस
करुण रस
वीर रस
अद्भुत रस
वीभत्स रस
भयानक रस
शांत रस
वात्सल्य रस
भक्ति रस
1. श्रृंगार रस – Shringar Ras
श्रृंगार रस: भारतीय काव्यशास्त्र का प्रमुख रस है, जो प्रेम और सौंदर्य को व्यक्त करता है। इसे रसों का राजा भी कहा जाता है क्योंकि यह मानव हृदय की सबसे स्वाभाविक और गहन भावनाओं में से एक है। श्रृंगार रस का मुख्य स्थायी भाव रति (प्रेम) है।
नायक नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन को श्रंगार रस कहते हैं श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है। इसका स्थाई भाव रति होता है।
विभाव (Vibhav)
अनुभाव (Anubhav)
अनुभाव वे बाहरी प्रतिक्रियाएं हैं जो विभाव और स्थायी भाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं और दर्शकों को रस का अनुभव कराती हैं। श्रृंगार रस के अनुभाव:
संचारी भाव (Sanchari Bhav)
संचारी भाव वे सहायक भाव होते हैं जो स्थायी भाव को प्रबल बनाते हैं और रस की अनुभूति को गहरा करते हैं। श्रृंगार रस के संचारी भाव:
श्रृंगार रस को मुख्य रूप से दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है:
संयोग श्रृंगार (Sanyog Shringar): जब नायक-नायिका का मिलन होता है, तब उत्पन्न होने वाला श्रृंगार रस संयोग श्रृंगार कहलाता है। इसमें मिलन, प्रेमालाप, आलिंगन, चुंबन आदि की स्थिति होती है।
वियोग श्रृंगार (Viyog Shringar): जब नायक-नायिका का वियोग होता है, तब उत्पन्न होने वाला श्रृंगार रस वियोग श्रृंगार कहलाता है। इसमें विरह, पीड़ा, अश्रु, चिंता, व्याकुलता आदि की स्थिति होती है।
2. हास्य रस – Hasya Ras
हास्य रस का स्थायी भाव हास है। इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर मन में जो प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है, उससे हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं।
विभाव (Vibhav)
अनुभाव (Anubhav)
अनुभाव वे बाहरी प्रतिक्रियाएं हैं जो विभाव और स्थायी भाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं और दर्शकों को रस का अनुभव कराती हैं। हास्य रस के अनुभाव:
संचारी भाव (Sanchari Bhav)
संचारी भाव वे सहायक भाव होते हैं जो स्थायी भाव को प्रबल बनाते हैं और रस की अनुभूति को गहरा करते हैं। हास्य रस के संचारी भाव:
हास्य रस को छह प्रकारों में विभाजित किया जाता है, जो व्यक्तियों के स्वभाव और हंसी के स्वरूप के आधार पर होते हैं:
उदाहरण (Examples)
3. रौद्र रस
भारतीय काव्यशास्त्र का वह रस है जो क्रोध और आक्रोश की भावना को व्यक्त करता है। इसका मुख्य स्थायी भाव क्रोध (गुस्सा) है। यह रस तब उत्पन्न होता है जब किसी असाधारण अपराध, अत्याचार, अपमान, या विवाद के कारण मन में गहरा आक्रोश और उत्तेजना उत्पन्न होती है।
विभाव (Vibhav)
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥
4. करुण रस – Karun Ras
इसका स्थायी भाव शोक होता है। इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं।
उदाहरण: महाभारत में अभिमन्यु की मृत्यु पर अर्जुन का शोक।5. वीर रस (Veer Ras)
इसका स्थायी भाव उत्साह होता है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है। इस रस के अंतर्गत जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं। उदाहरण: रामायण में राम का रावण के साथ युद्ध करते हुए वीरता का प्रदर्शन।6. अद्भुत रस (Adbhut Ras)
इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।
उदाहरण: महाभारत में भगवान कृष्ण द्वारा विराट रूप का दर्शन।7. वीभत्स रस (Bibhats Ras)
वीभत्स रस वह रस है जो घृणा, अरुचि, और जुगुप्सा की भावना को व्यक्त करता है। इसका मुख्य स्थायी भाव जुगुप्सा (घृणा) है। यह रस तब उत्पन्न होता है जब कोई अरुचिकर या घृणास्पद दृश्य देखा जाता है।
उदाहरण: महाभारत के युद्ध के बाद कुरुक्षेत्र का रक्तरंजित दृश्य।
8. भयानक रस (Bhayanak Ras)
भयानक रस वह रस है जो भय, आतंक, और डर की भावना को व्यक्त करता है। इसका मुख्य स्थायी भाव भय (डर) है। यह रस तब उत्पन्न होता है जब किसी भयानक या भयावह घटना का सामना किया जाता है।
उदाहरण: रामायण में सीता का रावण के अशोक वाटिका में भयभीत होना।
9. शांत रस (Shant Ras)
इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है। मोक्ष और आध्यात्म की भावना से जिस रस की उत्पत्ति होती है, उसको शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है। वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है।
उदाहरण: महाभारत में विदुर की शांत और संतुलित प्रवृत्ति।10. वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)
वात्सल्य रस वह रस है जो माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम और स्नेह को व्यक्त करता है। इसका मुख्य स्थायी भाव वत्सलता (मातृ प्रेम) है।
उदाहरण: महाभारत में यशोदा का कृष्ण के प्रति मातृस्नेह।
11. भक्ति रस (Bhakti Ras)
भक्ति रस वह रस है जो भगवान के प्रति अनन्य प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त करता है। इसका मुख्य स्थायी भाव अनुराग (भक्ति) है। उदाहरण:
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई,
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई।
करुण रस का मुख्य स्थायी भाव क्या है? उसके विभाव और अनुभाव क्या हो सकते हैं?
उत्तर: करुण रस का मुख्य स्थायी भाव दुःख और दया होता है। इसके विभाव में विपत्ति, वियोग, दुःख जैसे भाव होते हैं और इसके अनुभाव में रोना, विलाप, आँसू, दुःखी होना आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, महाकाव्य 'रामायण' में सीता का वियोग एक प्रमुख करुण रस का उदाहरण है।
वीर रस क्या होता है? इसके प्रमुख विभाव और उनके उदाहरण लिखिए।
उत्तर: वीर रस का मुख्य स्थायी भाव उत्साह और साहस होता है। इसके विभाव में वीरता, शौर्य, धैर्य आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में वीर गाने, योद्धा का स्वरुप, शक्ति का प्रदर्शन आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, 'महाभारत' में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए वीर रस का वर्णन किया गया है।
अद्भुत रस की विशेषताएं क्या हैं? उसके अनुभाव कैसे हो सकते हैं?
उत्तर: अद्भुत रस का मुख्य स्थायी भाव आश्चर्य और विस्मय होता है। इसके विभाव में अद्वितीयता, रहस्य, अनूठापन आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में हैरानी, अज्ञात, विचित्रता आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, 'अलिबाबा और चालीस चोर' कहानी में चोरों के चमत्कारी व अद्वितीय कौशल का वर्णन अद्भुत रस का उदाहरण है।
वीभत्स रस के प्रमुख विभाव और उनका अनुभव वर्णित करें।
उत्तर: वीभत्स रस का मुख्य स्थायी भाव घृणा और अरुचि होता है। इसके विभाव में कलंकितता, अस्वास्थ्यकरता, दुर्विचार आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में बिना चार, उपभोगना, नकली आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, 'रावण का वध' कहानी में रावण की कायादन में उसका असाधारण चेहरा वीभत्स रस का उदाहरण है।
भयानक रस का मुख्य भाव क्या होता है? उसके संचारी भाव कैसे हो सकते हैं?
उत्तर: भयानक रस का मुख्य स्थायी भाव भय और भीषणता होता है। इसके विभाव में विकटता, डरावनापन, अनिष्टकाल, असहयोग आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में भयभीत, घबराहट, भीखरापन आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, हिंदी फिल्म में भूतों का दर्शन या रावण की रानी की रूपरेखा, या जानवरों के असहयोग का उदाहरण भयानक रस के उदाहरण के रूप में दिया गया है।
शांत रस की प्रमुख विशेषताएं और उसके उदाहरण दीजिए।
उत्तर: शांत रस का मुख्य स्थायी भाव शांति और संतोष होता है। इसके विभाव में अंतःस्थलीयता, शांति, स्थिरता आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में ध्यान, स्थिरता, निश्चलता आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, शांत रस का अनुभव साधु संत की ध्यान विचार की अपनी शांति की अनुभूति के लिए दिया गया है।
वात्सल्य रस के मुख्य भाव क्या हैं? उसके विभाव और अनुभाव कैसे हो सकते हैं?
उत्तर: वात्सल्य रस का मुख्य स्थायी भाव प्रेम और संबंध होता है। इसके विभाव में प्रेम, स्नेह, ममता आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में बालक की देखभाल, माता-पिता की ममता, भाई-बहन का संबंध आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, 'रामायण' में कैकेयी का राजा के प्रेम का वर्णन वात्सल्य रस का उदाहरण है।
भक्ति रस की विशेषताएं और उसके उदाहरण लिखिए।
उत्तर: भक्ति रस का मुख्य स्थायी भाव भक्ति और श्रद्धा होता है। इसके विभाव में प्रेम, विश्वास, भगवदानुराग आदि भाव होते हैं और इसके अनुभाव में पूजा, ध्यान, सेवा, संगीत आदि शामिल होते हैं। उदाहरण के रूप में, संत कबीर दास या संत तुलसीदास द्वारा भगवान के प्रति भक्ति और श्रद्धा का वर्णन भक्ति रस के उदाहरण के रूप में दिया गया है।
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