वर्ण-विचार (Phonology): भाषा के DNA की संपूर्ण खोज
व्याकरण के इस foundational अध्याय में हम भाषा की सबसे छोटी और सबसे शक्तिशाली इकाई 'वर्ण' का संपूर्ण विश्लेषण करेंगे। वर्ण भाषा के DNA की तरह हैं; इनके सही ज्ञान के बिना भाषा की शुद्धता, उसके शब्दों की संरचना और सुंदर उच्चारण को समझना असंभव है।
1. वर्ण: परिभाषा और संकल्पना (Definition and Concept of Varn)
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके और खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते। यह भाषा की सबसे छोटी, अविभाज्य और मौलिक इकाई है। जब हम कुछ बोलते हैं, तो हमारे मुख से अनेक ध्वनियाँ (Sounds) निकलती हैं। व्याकरण में इन्हीं ध्वनियों के लिए निर्धारित किए गए लिखित चिह्नों (Symbols) को 'वर्ण' या 'अक्षर' कहा जाता है।
गहराई से समझिए: 'कमल' शब्द को बोलने पर हमें तीन ध्वनियाँ सुनाई देती हैं: 'क', 'म', 'ल'। लेकिन ये सबसे छोटी ध्वनियाँ नहीं हैं। इन्हें और तोड़ा जा सकता है:
- 'क' = क् + अ
- 'म' = म् + अ
- 'ल' = ल् + अ
इस प्रकार, 'कमल' शब्द की मूल ध्वनियाँ हैं: क्, अ, म्, अ, ल्, अ। अब आप 'क्' या 'अ' को और नहीं तोड़ सकते। यही अविभाज्य ध्वनियाँ 'वर्ण' हैं। यहाँ हलंत (्) लगा हुआ 'क्' एक शुद्ध व्यंजन वर्ण है, जबकि 'क' एक अक्षर है जिसमें दो वर्ण (क् + अ) समाहित हैं।
वर्णमाला (Alphabet)
किसी भी भाषा के सभी वर्णों के व्यवस्थित, क्रमबद्ध और संपूर्ण समूह को वर्णमाला कहते हैं। 'वर्णमाला' का अर्थ है 'वर्णों की माला'। हिंदी की वर्णमाला देवनागरी लिपि पर आधारित है और यह अत्यंत वैज्ञानिक है, क्योंकि इसका वर्गीकरण वर्णों के उच्चारण स्थानों के आधार पर किया गया है (गले से होंठों की ओर)।
हिंदी की मानक वर्णमाला में मुख्य रूप से 11 स्वर और 33 व्यंजन माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त अयोगवाह (अं, अः), संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र), उत्क्षिप्त व्यंजन (ड़, ढ़) और आगत ध्वनियाँ (ज़, फ़, ऑ) भी इसका अभिन्न हिस्सा हैं, जो मिलकर इसे पूर्ण बनाते हैं।
2. वर्ण के भेद (Types of Varn)
उच्चारण और संरचना के आधार पर हिंदी वर्णमाला के वर्णों को दो मुख्य कुलों में बाँटा जाता है:
- स्वर (Vowels): स्वतंत्र और शक्तिशाली।
- व्यंजन (Consonants): स्वरों पर आश्रित।
1. स्वर वर्ण (Vowels)
जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के, स्वतंत्र रूप से होता है, उन्हें स्वर कहते हैं। इनके उच्चारण में फेफड़ों से उठी हवा मुख से बिना किसी रुकावट या घर्षण के बाहर निकलती है। ये वर्णमाला के आधार स्तंभ हैं।
हिंदी में कुल 11 स्वर हैं:
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वरों का विस्तृत वर्गीकरण (Detailed Classification of Vowels)
स्वरों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:
(क) उच्चारण में लगने वाले समय (मात्रा) के आधार पर:
- ह्रस्व स्वर (Short Vowels): जिनके उच्चारण में सबसे कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है। ये हिंदी के मूल स्वर हैं। ये चार हैं: अ, इ, उ, ऋ।
- दीर्घ स्वर (Long Vowels): जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दोगुना समय (दो मात्रा का समय) लगता है। ये सात हैं: आ (अ+अ), ई (इ+इ), ऊ (उ+उ), ए (अ+इ), ऐ (अ+ए), ओ (अ+उ), औ (अ+ओ)।
- प्लुत स्वर (Prolonged Vowels): जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से तिगुना या उससे अधिक समय लगता है। इसका प्रयोग किसी को दूर से पुकारने, संगीत या मंत्रोच्चार में होता है। इसका चिह्न (३) या (ऽ) होता है, जैसे - 'ओ३म्', 'राऽऽऽम!'।
(ख) जिह्वा (जीभ) के प्रयोग के आधार पर:
- अग्र स्वर (Front Vowels): जिनके उच्चारण में जीभ का अगला भाग सक्रिय रहता है: इ, ई, ए, ऐ।
- मध्य स्वर (Central Vowels): जिनके उच्चारण में जीभ का मध्य भाग थोड़ा उठता है: अ।
- पश्च स्वर (Back Vowels): जिनके उच्चारण में जीभ का पिछला भाग सक्रिय रहता है: आ, उ, ऊ, ओ, औ।
(ग) ओष्ठों (होंठों) की स्थिति के आधार पर:
- वृत्तमुखी (Rounded): जिनके उच्चारण में होंठ गोल हो जाते हैं: उ, ऊ, ओ, औ।
- अवृत्तमुखी (Unrounded): जिनके उच्चारण में होंठ फैले रहते हैं, गोल नहीं होते: अ, आ, इ, ई, ऋ, ए, ऐ।
अयोगवाह (Ayogvah)
अं (अनुस्वार) और अः (विसर्ग) को अयोगवाह कहा जाता है। 'अयोगवाह' का अर्थ है - जो योग न होने पर भी साथ चले। ये न तो शुद्ध स्वर हैं और न ही शुद्ध व्यंजन, किंतु ये स्वरों के सहारे चलते हैं और अर्थ का वहन करते हैं।
- अनुस्वार (ं): यह एक नासिक्य ध्वनि है जिसका उच्चारण केवल नाक से होता है। यह पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म) का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे - गंगा (गङ्गा), चंचल (चञ्चल), संबंध (सम्बन्ध)।
- विसर्ग (ः): इसका उच्चारण कंठ से, आधे 'ह' के समान होता है। इसका प्रयोग प्रायः संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है। जैसे - प्रातः, नमः, अतः, दुःख।
2. व्यंजन वर्ण (Consonants)
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं हो सकता, उन्हें व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में 'अ' स्वर अंतर्निहित होता है (जैसे- क् + अ = क)। इनके उच्चारण में हवा मुख के किसी-न-किसी भाग (कंठ, तालु, मूर्धा आदि) से टकराकर या घर्षण करके बाहर निकलती है। हिंदी में मूल व्यंजनों की संख्या 33 है।
व्यंजनों का विस्तृत वर्गीकरण (Detailed Classification of Consonants)
व्यंजनों को उच्चारण के स्थान और प्रयत्न के आधार पर विभिन्न भागों में बाँटा जाता है:
1. स्पर्श व्यंजन (Stop Consonants)
'स्पर्श' का अर्थ है 'छूना'। इन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा (जीभ) मुख के अलग-अलग भागों को पूरी तरह स्पर्श करती है, जिससे वायु का प्रवाह कुछ क्षण के लिए रुकता है और फिर बाहर निकलता है। इनकी संख्या 25 है और इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है।
वर्ग | वर्ण | उच्चारण स्थान (Point of Articulation) |
---|---|---|
क-वर्ग (Velar) | क, ख, ग, घ, ङ | कंठ (जीभ का पिछला भाग कोमल तालु को छूता है) |
च-वर्ग (Palatal) | च, छ, ज, झ, ञ | तालु (जीभ का मध्य भाग कठोर तालु को छूता है) |
ट-वर्ग (Retroflex) | ट, ठ, ड, ढ, ण | मूर्धा (जीभ की नोक मुड़कर कठोर तालु के अगले भाग को छूती है) |
त-वर्ग (Dental) | त, थ, द, ध, न | दंत (जीभ की नोक ऊपरी दाँतों को स्पर्श करती है) |
प-वर्ग (Labial) | प, फ, ब, भ, म | ओष्ठ (दोनों होंठ आपस में मिलते हैं) |
2. अंतःस्थ व्यंजन (Approximants/Semi-vowels)
'अंतःस्थ' का अर्थ है 'बीच में स्थित'। इनका उच्चारण पारंपरिक स्वरों और व्यंजनों के मध्य का होता है। इनके उच्चारण में जीभ मुख के किसी भाग को पूरी तरह स्पर्श नहीं करती। ये चार हैं:
य, र, ल, व
- य, व: इन्हें 'अर्ध-स्वर' (Semi-vowel) भी कहते हैं।
- र: इसे 'लुंठित' (Trilled) व्यंजन कहते हैं, क्योंकि उच्चारण में जीभ का अग्रभाग काँपता है।
- ल: इसे 'पार्श्विक' (Lateral) व्यंजन कहते हैं, क्योंकि हवा जीभ के दोनों बगलों से निकलती है।
3. ऊष्म / संघर्षी व्यंजन (Fricatives)
'ऊष्म' का अर्थ है 'गर्म'। इनके उच्चारण में हवा मुख के किसी संकरे स्थान से घर्षण (संघर्ष) करते हुए निकलती है, जिससे एक गर्म श्वास पैदा होती है। ये चार हैं:
श, ष, स, ह
अन्य महत्वपूर्ण व्यंजन (Other Important Consonants)
- संयुक्त व्यंजन (Conjunct Consonants): जो दो भिन्न व्यंजनों के मेल से बनते हैं और एक नया रूप ले लेते हैं। ये चार हैं:
- क्ष = क् + ष (जैसे: कक्षा, क्षमा)
- त्र = त् + र (जैसे: पत्र, चित्र)
- ज्ञ = ज् + ञ (जैसे: ज्ञान, यज्ञ)
- श्र = श् + र (जैसे: श्रम, श्री)
- द्वित्व व्यंजन (Geminate Consonants): जब एक ही व्यंजन बिना स्वर के और फिर स्वर के साथ, यानी दो बार एक साथ आता है। जैसे - पक्का (क् + क), दिल्ली (ल् + ल), सम्मान (म् + म)।
- उत्क्षिप्त/द्विगुण व्यंजन (Flap Consonants): इनके उच्चारण में जीभ ऊपर उठकर मूर्धा को छूती है और फिर झटके से नीचे गिरती है। ये हिंदी के अपने विकसित व्यंजन हैं। ये दो हैं: ड़, ढ़ (जैसे- सड़क, पढ़ना)। ये कभी शब्द के आरंभ में नहीं आते।
3. प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
उच्चारण के लिए किए जाने वाले आंतरिक प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों को दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है:
1. श्वास (प्राण) की मात्रा के आधार पर
'प्राण' का अर्थ है 'वायु'। व्यंजनों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली श्वास-वायु की मात्रा के आधार पर ये दो प्रकार के होते हैं:
- अल्पप्राण (Unaspirated): 'अल्प' अर्थात् 'कम'। जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम श्वास (हवा) निकलती है। प्रत्येक स्पर्श व्यंजन वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवाँ वर्ण और सभी अंतःस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) अल्पप्राण होते हैं।
कुल संख्या: 15 (वर्गों से) + 4 (अंतःस्थ) = 19 - महाप्राण (Aspirated): 'महा' अर्थात् 'अधिक'। जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक श्वास निकलती है और 'ह' (h-like) जैसी ध्वनि सुनाई देती है। प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण और सभी ऊष्म व्यंजन (श, ष, स, ह) महाप्राण होते हैं।
कुल संख्या: 10 (वर्गों से) + 4 (ऊष्म) = 14
2. स्वरतंत्री में कंपन (नाद) के आधार पर
गले में स्थित स्वरतंत्रियों में होने वाले कंपन के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं:
- अघोष (Voiceless): 'अ' अर्थात् 'नहीं' और 'घोष' अर्थात् 'नाद/कंपन'। जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्री में कंपन नहीं होता। प्रत्येक वर्ग का पहला, दूसरा वर्ण और ऊष्म व्यंजन श, ष, स अघोष हैं।
कुल संख्या: 10 (वर्गों से) + 3 (ऊष्म) = 13 - सघोष / घोष (Voiced): 'स' अर्थात् 'सहित'। जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्री में कंपन होता है। प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण, सभी अंतःस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) और ऊष्म व्यंजन ह सघोष हैं। सभी 11 स्वर भी सघोष होते हैं।
कुल संख्या: 15 (वर्ग) + 4 (अंतःस्थ) + 1 (ह) = 20 व्यंजन + 11 स्वर = 31 वर्ण।
4. वर्ण-विच्छेद (Phonetic Splitting)
किसी शब्द में प्रयुक्त सभी वर्णों (स्वर और व्यंजन को उनके शुद्ध रूप में) को क्रम से अलग-अलग करके लिखना वर्ण-विच्छेद कहलाता है। यह शब्द की संरचना और वर्तनी को समझने के लिए एक एक्स-रे की तरह है।
मुख्य नियम: प्रत्येक व्यंजन के नीचे हलंत (्) लगाकर उसमें निहित स्वर को अलग करके लिखा जाता है। संयुक्त व्यंजनों को उनके मूल घटकों में तोड़ा जाता है।
शब्द | वर्ण-विच्छेद (विश्लेषण) |
---|---|
कमल | क् + अ + म् + अ + ल् + अ |
भारत | भ् + आ + र् + अ + त् + अ |
किताब | क् + इ + त् + आ + ब् + अ |
विज्ञान | व् + इ + ज् + ञ् + आ + न् + अ (यहाँ 'ज्ञ' को उसके मूल घटकों 'ज्+ञ' में तोड़ा गया है) |
कर्म | क् + अ + र् + म् + अ (यहाँ 'र्' रेफ के रूप में है, जो 'म' से पहले उच्चारित होता है) |
प्रकार | प् + र् + अ + क् + आ + र् + अ (यहाँ 'प्र' में 'प' आधा और 'र' पूरा है) |
राष्ट्र | र् + आ + ष् + ट् + र् + अ (यहाँ 'ष्ट्र' में 'ष' और 'ट' आधे हैं तथा 'र' पूरा है) |
कृपा | क् + ऋ + प् + आ (यहाँ 'कृ' में 'क' के साथ 'ऋ' स्वर की मात्रा है) |
आशीर्वाद | आ + श् + ई + र् + व् + आ + द् + अ ('र्' का उच्चारण 'वा' से पहले है, इसलिए वह 'व्' से पहले आया है) |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
स्वर और व्यंजन में मुख्य अंतर क्या है?
मुख्य अंतर उच्चारण की स्वतंत्रता का है। स्वर वे ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के स्वतंत्र रूप से होता है (जैसे- अ, ई, ओ) और हवा मुख से बिना रुकावट के निकलती है। इसके विपरीत, व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है (जैसे- क् + अ = क) और हवा मुख में कहीं-न-कहीं रुककर या घर्षण करके निकलती है।
संयुक्त व्यंजन कौन-कौन से हैं और वे कैसे बनते हैं?
हिंदी में चार मानक संयुक्त व्यंजन हैं: क्ष (क् + ष), त्र (त् + र), ज्ञ (ज् + ञ), और श्र (श् + र)। ये दो भिन्न व्यंजनों के मेल से बनते हैं, जिसमें पहला व्यंजन स्वर-रहित (आधा) और दूसरा स्वर-सहित (पूरा) होता है।
'ऋ' को स्वर क्यों माना जाता है, जबकि इसका उच्चारण 'रि' जैसा है?
'ऋ' को स्वर मानने का कारण व्याकरणिक है। यह व्यंजनों के साथ मात्रा ( ृ ) के रूप में जुड़ता है, ठीक वैसे ही जैसे अन्य स्वर (जैसे कि, कु) जुड़ते हैं। कोई भी व्यंजन किसी दूसरे व्यंजन से मात्रा के रूप में नहीं जुड़ता। ऐतिहासिक रूप से संस्कृत में यह एक शुद्ध स्वर था और हिंदी ने यह व्यवस्था वहीं से ली है, भले ही आज इसका उच्चारण 'रि' (व्यंजन+स्वर) जैसा प्रचलित हो गया है।
अयोगवाह किसे कहते हैं?
अनुस्वार (ं) और विसर्ग (ः) को अयोगवाह कहते हैं। ये चिह्न न तो पूरी तरह स्वर होते हैं और न ही व्यंजन, लेकिन ये स्वरों के सहारे ही लिखे और बोले जाते हैं (जैसे 'अं' में 'अ' का सहारा) और अर्थ का वहन करते हैं। इनका प्रयोग हमेशा स्वरों के बाद ही होता है।
अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजन में अंतर कैसे पहचानें?
एक सरल तरीका है अपने हाथ को मुँह के सामने रखकर बोलना। जिन व्यंजनों (जैसे- क, ग, च, ज) को बोलने पर हथेली पर कम हवा महसूस हो, वे अल्पप्राण हैं। जिन व्यंजनों (जैसे- ख, घ, छ, झ) को बोलने पर तेज़ हवा का झोंका महसूस हो और 'ह' जैसी ध्वनि सुनाई दे, वे महाप्राण हैं।
'र' के विभिन्न रूपों (कर्म, क्रम, ट्रक) में क्या अंतर है?
- कर्म में 'र्' (रेफ): यह 'र' का आधा (स्वर-रहित) रूप है। यह हमेशा अपने उच्चारण स्थान के अगले वर्ण के ऊपर लगता है।
- क्रम में 'र' (पदेन): यह 'र' का पूरा (स्वर-सहित) रूप है, जो अपने से पहले आए आधे व्यंजन के पैरों में लगता है। यहाँ 'प' आधा है और 'र' पूरा।
- ट्रक में 'र' (पदेन): यह भी 'र' का पूरा रूप है, जो गोल पेंदी वाले आधे व्यंजनों (जैसे- ट्, ड्) के नीचे लगता है।
5. ज्ञान-परीक्षा (अभ्यास-प्रश्नावली)
अपनी समझ को परखने के लिए इन प्रश्नों के उत्तर दें:
- 'घ' वर्ण सघोष है या अघोष? अल्पप्राण है या महाप्राण?
- 'विद्यालय' शब्द का सही वर्ण-विच्छेद क्या होगा?
- इनमें से ऊष्म व्यंजन कौन-से हैं: य, र, श, ल?
- 'हंस' और 'हँस' शब्दों में लगी बिंदी और चंद्रबिंदु के उच्चारण में क्या अंतर है?
- किस शब्द में द्वित्व व्यंजन का प्रयोग हुआ है: 'कर्म', 'धर्म', 'दिल्ली', 'ज्ञान'?
उत्तर देखने के लिए क्लिक करें
- 'घ' सघोष और महाप्राण है (क-वर्ग का चौथा वर्ण)।
- व् + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ
- 'श' ऊष्म व्यंजन है।
- 'हंस' (पक्षी) में अनुस्वार (ं) है, जिसका उच्चारण केवल नाक से होता है। 'हँस' (क्रिया) में अनुनासिक (ँ) है, जिसका उच्चारण नाक और मुँह दोनों से होता है।
- 'दिल्ली' (ल् + ल) शब्द में द्वित्व व्यंजन का प्रयोग हुआ है।
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