समास का तात्पर्य शब्दों के मेल से नए शब्दों का निर्माण करना है। जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नए शब्द का निर्माण करते हैं और उनका अर्थ संक्षिप्त हो जाता है, तब उसे समास कहते हैं।

यहाँ समास की कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं:

  1. संक्षिप्तकरण प्रक्रिया: जब दो या अधिक शब्द एक साथ मिलकर एक नए संक्षिप्त शब्द का निर्माण करते हैं, जिसे पढ़ने और समझने में आसानी होती है, उसे समास कहते हैं।

  2. शब्दों का संक्षिप्त रूप: दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़कर उनका संक्षिप्त रूप बनाना, जिससे उनका पूरा अर्थ व्यक्त हो, उसे समास कहते हैं।

  3. शब्द संयोग: जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नए शब्द का निर्माण करते हैं और उनका अर्थ बदल जाता है या विस्तारित हो जाता है, उसे समास कहते हैं।

  4. शब्दों का मेल: विभिन्न शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाने की प्रक्रिया, जिसमें उन शब्दों का संक्षिप्त और सारगर्भित रूप सामने आता है, उसे समास कहते हैं।

उदाहरण:

समास शब्दों को संक्षिप्त और सारगर्भित रूप में प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।


समास के मुख्य चार भेद होते हैं। ये निम्नलिखित हैं:

  1. तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)

  2. द्वंद्व समास (Dvandva Samas)

  3. बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)

  4. अव्ययीभाव समास (Avyayibhav Samas)

इनके अतिरिक्त, संस्कृत में कुछ और भेद भी होते हैं, जैसे:

  1. कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)

  2. द्विगु समास (Dvigu Samas)


1. तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)

तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहले पद (शब्द) की अपेक्षा दूसरे पद (शब्द) की प्रधानता होती है। इसमें पहला पद हमेशा समस्त पद के साथ संबंधी होता है। तत्पुरुष समास में पहले पद का दूसरा पद पर आश्रित होना आवश्यक है। इसे 'तत्पुरुष समास' इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें 'तस्य पुरुष:' (उसका पुरुष) का भाव रहता है।

तत्पुरुष समास के भेद

तत्पुरुष समास  के भेद

  1. कर्म तत्पुरुष समास 

  2. करण तत्पुरुष समास 

  3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास 

  4. अपादान तत्पुरुष समास 
  5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास 

  6. अधिकरण तत्पुरुष समास

  7. अवधारण तत्पुरुष समास 

  8. नञ् तत्पुरुष समास 

कर्म तत्पुरुष समास : कर्म तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'कर्म' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें कर्म का अर्थ होता है 'जिसका कार्य किया जाए' या 'जिस पर क्रिया की जाए'। इस प्रकार के समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है। इसे कर्मधारय समास भी कहते हैं क्योंकि इसमें विशेष्य और विशेषण का संबंध होता है।

कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. गंगाजल (गंगा + जल) - गंगा का जल
  2. पुष्पहार (पुष्प + हार) - फूलों की माला
  3. कृष्णभक्त (कृष्ण + भक्त) - कृष्ण का भक्त
  4. नदीपार (नदी + पार) - नदी का पार
  5. गोदुग्ध (गौ + दुग्ध) - गाय का दूध
  6. रविकर (रवि + कर) - सूर्य की किरण
  7. देवपूजा (देव + पूजा) - देवताओं की पूजा
  8. संगीतप्रेमी (संगीत + प्रेमी) - संगीत का प्रेमी
  9. भोजनकक्ष (भोजन + कक्ष) - भोजन का कक्ष
  10. शस्त्रधारी (शस्त्र + धारी) - शस्त्र का धारण करने वाला
विस्तार:
कर्म तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'कर्म' कहलाता है और दूसरा पद 'क्रिया' या 'कार्य' को दर्शाता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो किसी कार्य या क्रिया का बोध कराता है। इस प्रकार के समास में पहला पद दूसरा पद का कार्य करने या उसके प्रति संबंधित होता है।
उदाहरण के तौर पर, 'गंगाजल' शब्द में 'गंगा' और 'जल' दो पद हैं। यहाँ 'गंगा' कर्म पद है और 'जल' प्रधान पद है। इस समास में 'गंगा का जल' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'कृष्णभक्त' शब्द में 'कृष्ण' और 'भक्त' दो पद हैं, जहाँ 'कृष्ण' कर्म पद है और 'भक्त' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'कृष्ण का भक्त'।
कर्म तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। 


करण तत्पुरुष समास : करण तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'करण' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'करण' का अर्थ है 'साधन' या 'उपकरण', अर्थात् जिस साधन या उपकरण के द्वारा कार्य किया जाता है। इस प्रकार के समास में पहला पद साधन या उपकरण का बोध कराता है और दूसरा पद प्रधान पद होता है।

करण तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. लेखनीपथ (लेखनी + पथ) - लेखनी का पथ
  2. तलवारघात (तलवार + घात) - तलवार का प्रहार
  3. गमनपद (गमन + पद) - चलने का पद
  4. वीणावादन (वीणा + वादन) - वीणा का वादन
  5. वाणीपाठ (वाणी + पाठ) - वाणी का पाठ
  6. हस्तलिखित (हस्त + लिखित) - हाथ से लिखा हुआ
  7. काठगोला (काठ + गोला) - लकड़ी का गोला
  8. शूलपीड़ा (शूल + पीड़ा) - शूल की पीड़ा
  9. तप्तजल (तप्त + जल) - गरम किया हुआ जल
  10. खड्गधारण (खड्ग + धारण) - तलवार का धारण करना
विस्तार:
करण तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'करण' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें करण का अर्थ 'जिसके द्वारा कार्य किया जाता है' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो किसी साधन या उपकरण का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'तलवारघात' शब्द में 'तलवार' और 'घात' दो पद हैं। यहाँ 'तलवार' करण पद है और 'घात' प्रधान पद है। इस समास में 'तलवार का प्रहार' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'हस्तलिखित' शब्द में 'हस्त' और 'लिखित' दो पद हैं, जहाँ 'हस्त' करण पद है और 'लिखित' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'हाथ से लिखा हुआ'।

करण तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब कार्य के साधन या उपकरण को इंगित करना होता है।


सम्प्रदान तत्पुरुष समास

सम्प्रदान तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'सम्प्रदान' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'सम्प्रदान' का अर्थ है 'जिसे कुछ दिया जाए' या 'जिसे प्रदान किया जाए'। इस प्रकार के समास में पहला पद वह होता है जिसे कुछ दिया गया हो और दूसरा पद प्रधान होता है।

सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. राजाय धनं (राजा + धन) - राजा को धन
  2. गुरवे पुस्तकं (गुरु + पुस्तक) - गुरु को पुस्तक
  3. शिष्याय विद्या (शिष्य + विद्या) - शिष्य को विद्या
  4. बालकाय मिठाई (बालक + मिठाई) - बालक को मिठाई
  5. मित्राय पत्र (मित्र + पत्र) - मित्र को पत्र
  6. देवाय भोग (देव + भोग) - देवता को भोग
  7. पिता को आशीर्वाद (पिता + आशीर्वाद) - पिता को आशीर्वाद
  8. सेवकाय वस्त्र (सेवक + वस्त्र) - सेवक को वस्त्र
  9. राष्ट्राय सम्मान (राष्ट्र + सम्मान) - राष्ट्र को सम्मान
  10. विद्यार्थिनि उपहार (विद्यार्थी + उपहार) - विद्यार्थी को उपहार
विस्तार:
सम्प्रदान तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'सम्प्रदान' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें सम्प्रदान का अर्थ 'जिसे प्रदान किया गया हो' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो किसी व्यक्ति या वस्तु को किसी वस्तु के प्रदान करने का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'राजाय धनं' शब्द में 'राजा' और 'धन' दो पद हैं। यहाँ 'राजा' सम्प्रदान पद है और 'धन' प्रधान पद है। इस समास में 'राजा को धन' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'गुरवे पुस्तकं' शब्द में 'गुरु' और 'पुस्तक' दो पद हैं, जहाँ 'गुरु' सम्प्रदान पद है और 'पुस्तक' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'गुरु को पुस्तक'।

सम्प्रदान तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब किसी व्यक्ति या वस्तु को किसी वस्तु का प्रदान किया जाना इंगित करना होता है।


अपादान तत्पुरुष समास : अपादान तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'अपादान' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'अपादान' का अर्थ है 'जिससे कुछ दूर हो' या 'जिससे कुछ अलग हो'। इस प्रकार के समास में पहला पद किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान को इंगित करता है जिससे अलगाव या दूरी का बोध होता है, और दूसरा पद प्रधान होता है।

अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. ग्रामात् वनम् (ग्राम + वन) - गाँव से वन
  2. शाखात् पत्रम् (शाखा + पत्र) - शाखा से पत्ता
  3. गृहात् विद्यालयम् (गृह + विद्यालय) - घर से विद्यालय
  4. अरण्यात् नगरम् (अरण्य + नगर) - जंगल से नगर
  5. पर्वतात् नदी (पर्वत + नदी) - पर्वत से नदी
  6. सिंधुत् समुद्र (सिंधु + समुद्र) - नदी से समुद्र
  7. कृषकात् खेत (कृषक + खेत) - किसान से खेत
  8. धेनुत् दुग्धम् (धेनु + दुग्ध) - गाय से दूध
  9. मूलात् फलं (मूल + फल) - जड़ से फल
  10. माता से पुत्र (माता + पुत्र) - माँ से पुत्र
विस्तार:
अपादान तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'अपादान' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें अपादान का अर्थ 'जिससे अलग हुआ' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान से दूरी या अलगाव का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'ग्रामात् वनम्' शब्द में 'ग्राम' और 'वन' दो पद हैं। यहाँ 'ग्राम' अपादान पद है और 'वन' प्रधान पद है। इस समास में 'गाँव से वन' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'शाखात् पत्रम्' शब्द में 'शाखा' और 'पत्र' दो पद हैं, जहाँ 'शाखा' अपादान पद है और 'पत्र' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'शाखा से पत्ता'।

अपादान तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान से दूरी या अलगाव को इंगित करना होता है। 

सम्बन्ध तत्पुरुष समास: सम्बन्ध तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'सम्बन्ध' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'सम्बन्ध' का अर्थ है 'जिसका संबंध किसी अन्य से हो'। इस प्रकार के समास में पहला पद किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान के साथ संबंध को बोध कराता है, और दूसरा पद प्रधान होता है।

सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. राजकुमार (राजा + कुमार) - राजा का पुत्र
  2. मातृभक्त (माता + भक्त) - माता का भक्त
  3. गृहस्वामी (गृह + स्वामी) - घर का स्वामी
  4. शिष्यगण (शिष्य + गण) - शिष्यों का समूह
  5. ग्रामवासी (ग्राम + वासी) - गाँव का निवासी
  6. पितृऋण (पिता + ऋण) - पिता का ऋण
  7. भूतनाथ (भूत + नाथ) - भूतों का स्वामी (शिव)
  8. विद्या‍र्थी (विद्या + अर्थी) - विद्या का इच्छुक
  9. राजभवन (राजा + भवन) - राजा का भवन
  10. कृष्णमूर्ति (कृष्ण + मूर्ति) - कृष्ण की मूर्ति
विस्तार:
सम्बन्ध तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'सम्बन्ध' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें सम्बन्ध का अर्थ 'जिसका संबंध किसी अन्य से हो' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान के साथ संबंध का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'राजकुमार' शब्द में 'राजा' और 'कुमार' दो पद हैं। यहाँ 'राजा' सम्बन्ध पद है और 'कुमार' प्रधान पद है। इस समास में 'राजा का पुत्र' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'मातृभक्त' शब्द में 'माता' और 'भक्त' दो पद हैं, जहाँ 'माता' सम्बन्ध पद है और 'भक्त' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'माता का भक्त'।

सम्बन्ध तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान के साथ संबंध को इंगित करना होता है। 

अधिकरण तत्पुरुष समास

अधिकरण तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'अधिकरण' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'अधिकरण' का अर्थ है 'जहाँ पर कोई कार्य होता है' या 'जिस स्थान पर कुछ घटित होता है'। इस प्रकार के समास में पहला पद स्थान, समय या परिस्थिति को बोध कराता है, और दूसरा पद प्रधान होता है।

अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. धरणीधर (धरणी + धर) - पृथ्वी को धारण करने वाला
  2. वनवास (वन + वास) - वन में निवास
  3. ग्रामवृत्तांत (ग्राम + वृत्तांत) - गाँव के वृत्तांत
  4. राजमहल (राज + महल) - राजा का महल
  5. जलपथ (जल + पथ) - जल में मार्ग
  6. कुशासन (कुश + आसन) - कुश का आसन
  7. प्रासादनिवासी (प्रासाद + निवासी) - महल में रहने वाला
  8. हिमालयवास (हिमालय + वास) - हिमालय में निवास
  9. वन्यपशु (वन + पशु) - वन में रहने वाला पशु
  10. नगरप्रवेश (नगर + प्रवेश) - नगर में प्रवेश
विस्तार:
अधिकरण तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'अधिकरण' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें अधिकरण का अर्थ 'जिस स्थान, समय या परिस्थिति में कुछ घटित होता है' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो स्थान, समय या परिस्थिति का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'वनवास' शब्द में 'वन' और 'वास' दो पद हैं। यहाँ 'वन' अधिकरण पद है और 'वास' प्रधान पद है। इस समास में 'वन में निवास' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'राजमहल' शब्द में 'राजा' और 'महल' दो पद हैं, जहाँ 'राजा' अधिकरण पद है और 'महल' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'राजा का महल'।

अधिकरण तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब स्थान, समय या परिस्थिति को इंगित करना होता है। 

अवधारण तत्पुरुष समास

अवधारण तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'अवधारण' होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'अवधारण' का अर्थ है 'जिसके द्वारा धारण किया जाए' या 'जिससे धारण किया जाए'। इस प्रकार के समास में पहला पद किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति को बोध कराता है जिसे धारण किया जाता है, और दूसरा पद प्रधान होता है।

अवधारण तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. जलधारण (जल + धारण) - जल को धारण करना
  2. अन्नधारण (अन्न + धारण) - अन्न को धारण करना
  3. धनधारण (धन + धारण) - धन को धारण करना
  4. वस्त्रधारण (वस्त्र + धारण) - वस्त्र को धारण करना
  5. पुष्पधारण (पुष्प + धारण) - फूल को धारण करना
  6. रत्नधारण (रत्न + धारण) - रत्न को धारण करना
  7. भूषणधारण (भूषण + धारण) - आभूषण को धारण करना
  8. आभूषणधारण (आभूषण + धारण) - आभूषण को धारण करना
  9. संगीतधारण (संगीत + धारण) - संगीत को धारण करना
  10. शस्त्रधारण (शस्त्र + धारण) - शस्त्र को धारण करना
विस्तार:
अवधारण तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'अवधारण' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें अवधारण का अर्थ 'जिसके द्वारा धारण किया जाता है' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा या विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति को धारण करने का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'जलधारण' शब्द में 'जल' और 'धारण' दो पद हैं। यहाँ 'जल' अवधारण पद है और 'धारण' प्रधान पद है। इस समास में 'जल को धारण करना' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'वस्त्रधारण' शब्द में 'वस्त्र' और 'धारण' दो पद हैं, जहाँ 'वस्त्र' अवधारण पद है और 'धारण' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'वस्त्र को धारण करना'।

अवधारण तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति को धारण करने का बोध कराना होता है।


नञ् तत्पुरुष समास

नञ् तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें पहला पद 'नञ्' (न, अन, आदि उपसर्ग) होता है और दूसरा पद प्रधान होता है। 'नञ्' का अर्थ है 'नकार' या 'नहीं'। इस प्रकार के समास में पहला पद नकारात्मक भाव को व्यक्त करता है और दूसरा पद प्रधान होता है। यह समास नकारात्मकता या विरोध का बोध कराता है।

नञ् तत्पुरुष समास के उदाहरण:
  1. अनीति (अन + नीति) - नीति का अभाव, अन्याय
  2. नास्तिक (न + आस्तिक) - आस्तिक का अभाव, जो आस्तिक नहीं है
  3. अधर्म (अ + धर्म) - धर्म का अभाव
  4. अशिक्षा (अ + शिक्षा) - शिक्षा का अभाव
  5. अन्याय (अन + न्याय) - न्याय का अभाव
  6. अनुशासनहीन (अन + अनुशासन + हीन) - अनुशासन का अभाव
  7. अमानुष (अ + मानुष) - मनुष्य का अभाव, अमानवीय
  8. अनभिज्ञ (अन + अभिज्ञ) - ज्ञात का अभाव, अज्ञानी
  9. अस्वास्थ्य (अ + स्वास्थ्य) - स्वास्थ्य का अभाव
  10. अप्रिय (अ + प्रिय) - प्रिय का अभाव, अप्रिय
विस्तार:
नञ् तत्पुरुष समास में दो पद होते हैं - पहला पद 'नञ्' कहलाता है और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें 'नञ्' का अर्थ 'नकार' होता है। यह समास तब बनता है जब एक संज्ञा, विशेषण या क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर एक नया शब्द बनाता है जो नकारात्मकता या विरोध का बोध कराता है।
उदाहरण के तौर पर, 'अनीति' शब्द में 'अन' और 'नीति' दो पद हैं। यहाँ 'अन' नञ् पद है और 'नीति' प्रधान पद है। इस समास में 'नीति का अभाव' का अर्थ छिपा होता है। इसी प्रकार, 'नास्तिक' शब्द में 'न' और 'आस्तिक' दो पद हैं, जहाँ 'न' नञ् पद है और 'आस्तिक' प्रधान पद है, जिससे अर्थ निकलता है 'जो आस्तिक नहीं है'।

नञ् तत्पुरुष समास के माध्यम से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है, जिससे अभिव्यक्ति सरल और प्रभावी होती है। इस प्रकार के समास का प्रयोग विशेष रूप से तब होता है जब किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति का अभाव या विरोध को व्यक्त करना होता है। 

द्वंद्व समास

द्वंद्व समास वह समास है जिसमें दो या दो से अधिक पदों का समान महत्त्व होता है और सभी पद प्रधान होते हैं। इसमें दोनों पदों का अलग-अलग अर्थ होता है और समास बनने पर भी दोनों पदों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहता है। इसे संयुक्त समास भी कहा जाता है। इसमें दो या दो से अधिक पदों को जोड़कर एक नया पद बनाया जाता है जो उन सभी पदों का संयुक्त अर्थ व्यक्त करता है।

द्वंद्व समास के उदाहरण:
  1. राम-लक्ष्मण (राम + लक्ष्मण) - राम और लक्ष्मण
  2. सूख-दुःख (सूख + दुःख) - सुख और दुःख
  3. गंगा-यमुना (गंगा + यमुना) - गंगा और यमुना
  4. राजा-रानी (राजा + रानी) - राजा और रानी
  5. भाई-बहन (भाई + बहन) - भाई और बहन
  6. आना-जाना (आना + जाना) - आना और जाना
  7. शिक्षक-विद्यार्थी (शिक्षक + विद्यार्थी) - शिक्षक और विद्यार्थी
  8. धूप-छाँव (धूप + छाँव) - धूप और छाया
  9. प्यार-नफरत (प्यार + नफरत) - प्यार और नफरत
  10. पुस्तक-कलम (पुस्तक + कलम) - पुस्तक और कलम
विस्तार:
द्वंद्व समास में दो या दो से अधिक पदों का समान महत्त्व होता है और इनका संयुक्त अर्थ एक ही शब्द में व्यक्त किया जाता है। यह समास तब बनता है जब एक से अधिक शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाया जाता है जो उन सभी शब्दों का संयुक्त अर्थ बताता है। इसमें दोनों पद स्वतंत्र होते हैं और अपने-अपने अर्थ को बनाए रखते हैं।
उदाहरण के तौर पर, 'राम-लक्ष्मण' शब्द में 'राम' और 'लक्ष्मण' दो पद हैं। यहाँ दोनों पद समान महत्त्व रखते हैं और मिलकर एक संयुक्त अर्थ 'राम और लक्ष्मण' व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार, 'सूख-दुःख' शब्द में 'सूख' और 'दुःख' दो पद हैं, जहाँ दोनों पद मिलकर एक संयुक्त अर्थ 'सुख और दुःख' बताते हैं।

द्वंद्व समास का प्रयोग भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता लाने के लिए किया जाता है। यह समास विशेष रूप से तब प्रयोग में आता है जब दो या दो से अधिक पदों को मिलाकर एक संयुक्त अर्थ व्यक्त करना होता है।

द्वंद्व समास के प्रकार

  1. इतरेतर द्वंद्व समास - जिसमें दोनों पद समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं और मिलकर एक संयुक्त अर्थ का निर्माण करते हैं। जैसे:

    • माता-पिता (माता + पिता) - माता और पिता
    • रात्रि-दिवस (रात्रि + दिवस) - रात और दिन
  2. समाहार द्वंद्व समास- जिसमें दोनों पद मिलकर एक समूह या संग्रह का बोध कराते हैं। जैसे:

    • पर्णपुष्पम् (पर्ण + पुष्प) - पत्तियाँ और फूल (पत्तों और फूलों का समूह)
    • ग्रामनगर (ग्राम + नगर) - गाँव और शहर (गाँवों और शहरों का समूह)

  3. वैकल्पिक द्वंद्व - वैकल्पिक द्वंद्व  समास वह समास है जिसमें दो या दो से अधिक पदों के बीच वैकल्पिक संबंध होता है। इसमें दोनों पदों का अलग-अलग महत्त्व होता है और इनमें से एक को चुनने का विकल्प होता है। इस प्रकार के समास में एक विकल्प के रूप में दोनों पदों को मिलाकर एक नया पद बनाया जाता है।

वैकल्पिक द्वंद्व समास के उदाहरण:
  1. जीवन-मरण (जीवन + मरण) - जीवन या मरण
  2. शांति-अशांति (शांति + अशांति) - शांति या अशांति
  3. हार-जीत (हार + जीत) - हार या जीत
  4. धन-धान्य (धन + धान्य) - धन या धान्य
  5. सत्य-असत्य (सत्य + असत्य) - सत्य या असत्य
  6. धर्म-अधर्म (धर्म + अधर्म) - धर्म या अधर्म
  7. रात-दिन (रात + दिन) - रात या दिन
  8. न्याय-अन्याय (न्याय + अन्याय) - न्याय या अन्याय
  9. स्वर्ग-नरक (स्वर्ग + नरक) - स्वर्ग या नरक
  10. लाभ-हानि (लाभ + हानि) - लाभ या हानि
विस्तार:
वैकल्पिक द्वंद्व समास में दो पद होते हैं जिनमें वैकल्पिक संबंध होता है। इसमें एक पद का अर्थ दूसरे पद के विपरीत होता है और दोनों पदों को मिलाकर एक नया पद बनाया जाता है जो वैकल्पिकता का बोध कराता है। यह समास तब बनता है जब दो पदों के बीच विकल्प का संबंध होता है और इनका संयुक्त अर्थ एक ही शब्द में व्यक्त किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, 'जीवन-मरण' शब्द में 'जीवन' और 'मरण' दो पद हैं। यहाँ दोनों पद वैकल्पिक संबंध रखते हैं और मिलकर एक संयुक्त अर्थ 'जीवन या मरण' व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार, 'शांति-अशांति' शब्द में 'शांति' और 'अशांति' दो पद हैं, जहाँ दोनों पद मिलकर एक संयुक्त अर्थ 'शांति या अशांति' बताते हैं।
वैकल्पिक द्वंद्व समास का प्रयोग भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता लाने के लिए किया जाता है। यह समास विशेष रूप से तब प्रयोग में आता है जब दो पदों के बीच वैकल्पिक संबंध को व्यक्त करना होता है।


बहुव्रीहि समास

बहुव्रीहि समास वह समास होता है जिसमें उसे बनाने वाले पदों का कोई निश्चित संख्या से अधिक पद होते हैं। इस समास में समास बनने के लिए निश्चित संख्या से अधिक पदों का संयोजन किया जाता है जिनसे एक नया पद बनता है जो उन सभी पदों का समान महत्त्व व्यक्त करता है। इसमें समास का पद स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखता है।

बहुव्रीहि समास के उदाहरण:
  1. महाकवि (महा + कवि) - जो कोई बड़ा कवि हो
  2. महामहिम (महा + महिमा) - जिसकी महिमा बहुत बड़ी हो
  3. सुन्दरकंद (सुन्दर + कंद) - जो सुंदर हो और कंद का विशेष भाग हो
  4. महासभा (महा + सभा) - बड़ी सभा
  5. अभिमानी (अभि + मान) - जिसका अभिमान बहुत बड़ा हो
  6. राजपुत्र (राज + पुत्र) - जो किसी राजा का पुत्र हो
  7. विद्याधर (विद्या + अधर) - जो बहुत विद्वान हो
  8. शिक्षावाचक (शिक्षा + वाचक) - जो शिक्षा के सम्बंध में बताए
  9. धनवान (धन + वान) - जिसका धन बहुत हो
  10. देवदारु (देव + दारु) - जिसमें देवताओं की बहुत सी दारु हो
विस्तार:

बहुव्रीहि समास में एक से अधिक पदों का समान महत्त्व होता है और इनका संयुक्त अर्थ एक नये पद के रूप में प्रकट होता है। यह समास भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता लाने के लिए प्रयोग में आता है और उसे बनाने वाले पदों की संख्या अवश्य अधिक होती है। 
कर्मधारय बहुव्रीहि समास वह समास होता है जिसमें पूर्वपद में विशेषण होता है और उत्तरपद में कर्ता का नाम आता है। इस समास के मिलने से एक नया शब्द बनता है जो व्यक्ति या वस्तु की विशेषता को दर्शाता है।

उदाहरण:

इन उदाहरणों में पूर्वपद में एक विशेषण है और उत्तरपद में एक कर्ता की विशेषता दर्शाई गई है।

बहुव्रीहि समास के प्रकार

तत्पुरुष बहुव्रीहि समास एक प्रकार का समास है जिसमें पूर्वपद में तत्पुरुष समास होता है और उत्तरपद में कर्ता का नाम आता है। इस समास के मिलने से एक नया शब्द बनता है जो किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता को दर्शाता है।

उदाहरण:

द्विगु बहुव्रीहि समास वह समास होता है जिसमें दो समान शब्दों का मिलने से नया शब्द बनता है, जो दोनों के अर्थ को व्यक्त करता है। इसमें दोनों पदों का अर्थ मिलकर एक नया अर्थ उत्पन्न होता है।

उदाहरण:

अव्ययी बहुव्रीहि समास वह समास है जिसमें एक अव्यय और एक संज्ञा मिलकर नया शब्द बनाते हैं। इस समास में अव्यय पूर्वपद में विशेषण की भूमिका निभाता है और संज्ञा उत्तरपद में मुख्य अर्थ देती है।

उदाहरण:

समानाधिकरण बहुव्रीहि समास एक प्रकार का समास होता है जिसमें तीसरे पद के द्वारा दोनों पदों का समान संबंध दिखाया जाता है। यहाँ पर दोनों पदों का समान संबंध होने से नया शब्द बनता है जो किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता को दर्शाता है।

उदाहरण:

तुल्ययोग बहुव्रीहि समास एक प्रकार का समास होता है जिसमें दोनों पदों का समान रूप से योग होता है, लेकिन उनका अर्थ अलग-अलग होता है। इस समास में दोनों पदों का अर्थ अलग-अलग लिया जाता है।

उदाहरण:

व्यतिहार बहुव्रीहि समास एक प्रकार का समास होता है जिसमें दोनों पद मिलकर किसी विशेष कार्य या क्रिया को दर्शाते हैं। इस समास में दोनों पदों का मिलने से नया शब्द बनता है जो विशेष कार्य या क्रिया को संकेत करता है।

उदाहरण:

उपपद बहुव्रीहि समास एक प्रकार का समास होता है जिसमें दूसरे पद का केवल एक अक्षर ही समास में शामिल होता है। यह समास विशेषता या संकेत के लिए प्रयुक्त होता है।

उदाहरण:

कर्मधारय-तत्पुरुष बहुव्रीहि समास एक प्रकार का समास होता है जिसमें कर्मधारय समास और तत्पुरुष समास का मिलने से नया शब्द बनता है। इस समास में कर्मधारय समास पूर्वपद (विशेषण) की भूमिका निभाता है और उसके बाद तत्पुरुष समास (मुख्य शब्द) अर्थ देता है।

उदाहरण:

अव्ययीभाव समास

हिंदी व्याकरण में समास का एक प्रमुख प्रकार है। इसमें दो शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं। इन दो शब्दों में से पहला शब्द अव्यय होता है और वही इस समास का मुख्य अर्थ बताता है। अव्यय शब्द लिंग, वचन और कारक के अनुसार अपना रूप नहीं बदलता है। यह समास वाक्यों को संक्षिप्त और प्रभावी बनाने में सहायक होता है।

अव्ययीभाव समास के कुछ उदाहरण:

अव्ययीभाव समास के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं

1. कर्मधारय अव्ययीभाव समास:

2. तत्पुरुष अव्ययीभाव समास:

3. द्विगु अव्ययीभाव समास:

अव्ययीभाव समास का प्रयोग:

कर्मधारय समास

हिंदी व्याकरण का एक प्रकार है जिसमें दो शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं। इन दो शब्दों में से पहला शब्द 'कर्म' होता है, जो किसी विशेषण की भूमिका निभाता है। दूसरा शब्द 'कर्ता' होता है, जो व्यक्ति या वस्तु को दर्शाता है जिसकी विशेषता है। इन दोनों के मिलने से एक नया शब्द बनता है जो उस विशेषता को संकेत करता है।

उदाहरण:

  1. नीलकंठ - जिसका गला नीला है (शिव)
  2. श्वेतपत्र - जिसका पत्र सफेद है (कागज)
  3. त्रिलोकी - जिसका स्वामी तीनों लोक हैं (ब्रह्मा/विष्णु/शिव)

कर्मधारय समास के प्रकार चार होते हैं

  1. पूर्वपद कर्मधारय: इस प्रकार के समास में कर्म पूर्वपद होता है और कर्ता उत्तरपद। उदाहरण: नीलकंठ, श्वेतपत्र, त्रिलोकी।

  2. उत्तरपद कर्मधारय:इस प्रकार के समास में कर्म उत्तरपद होता है और कर्ता पूर्वपद। उदाहरण: गोपीनाथ, कृष्णकन्हैया, श्यामसुंदर।

  3. समस्तपद कर्मधारय: इस प्रकार के समास में दोनों शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं जो किसी विशेष विशेषता को दर्शाते हैं। उदाहरण: चंचल, झूमझूम, मारपीट।

  4. तत्पुरुष-कर्मधारय: इस प्रकार के समास में पहला शब्द तत्पुरुष समास होता है और दूसरा शब्द कर्मधारय समास। उदाहरण: महात्मा, सदाचार, सत्यवादी।

द्विगु समास हिंदी व्याकरण में एक प्रकार का समास है जिसमें दो समान शब्दों का मिलने से नया शब्द बनता है, जो किसी विशेष विशेषता को दर्शाता है। इस समास में दोनों पदों का अर्थ मिलकर एक नया अर्थ प्रकट होता है।

द्विगु समास के उदाहरण:

  1. चंचल (चंचल + ता): जो बहुत चंचल हो।
  2. धृष्ट (धृष्ट + ता): जो बहुत ही धृष्ट हो।
  3. दानव (दानव + ता): जो दानवों का समूह हो।
  4. शिव (शिव + ता): जो भगवान शिव का हो।

द्विगु समास के भेद

  1. समाहारद्विगु समास (Samaahar Dvigu Samas):

    • इसमें पहले और दूसरे पद का अर्थ एक होता है और तीसरे पद का अर्थ दोनों पदों की विशेषता का समाहार करता है।
    • उदाहरण: नागपशु (नाग + पशु): जो पशु नागों का समूह हो।
  2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास (Uttarapad Pradhan Dvigu Samas):

    • इसमें तीसरे पद का अर्थ प्रधान होता है और पहले और दूसरे पदों का अर्थ उसे विशेषित करता है।
    • उदाहरण: नरपशु (नर + पशु): जो पशु नरों का समूह हो।

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