हिंदी साहित्य और काव्यशास्त्र में छंद का विशेष महत्व है। छंद कविता की आत्मा होती है, जो कविता को लय और माधुर्य प्रदान करती है। छंद विभिन्न मात्राओं और वर्णों के संयोजन से बनते हैं, और इनके कई प्रकार होते हैं। इस अध्याय में हम छंद के विभिन्न प्रकारों, उनकी विशेषताओं, और उदाहरणों के साथ विस्तार से चर्चा करेंगे।
छंद वह नियमबद्ध रचना है जिसमें वर्ण, मात्राओं और यतियों का विशेष क्रम होता है। छंद कविता की लयबद्धता को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
छंद के मुख्यतः दो भेद होते हैं:
वर्णिक छंद
मात्रिक छंद
1. वर्णिक छंद
वर्णिक छंद में वर्णों की संख्या का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें मात्राओं की अपेक्षा वर्णों की गणना अधिक महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए:
अनुष्टुप: इस छंद में प्रत्येक पंक्ति में 8 वर्ण होते हैं। चार पंक्तियों का एक श्लोक बनता है।
उदाहरण:
सखे सहचर राधे,
वसति कुंज-मंडले।
शार्दूलविक्रीडित: इस छंद में प्रत्येक पंक्ति में 19 वर्ण होते हैं। इसका प्रयोग शृंगार रस की कविताओं में किया जाता है।
उदाहरण:
हरित-वसना वलना, चंचल नयन।
कुसुमित वन में रुचि, शोभित नवल तन।
2. मात्रिक छंद
मात्रिक छंद में मात्राओं की संख्या का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्रत्येक पंक्ति में कुल मात्राओं की गिनती की जाती है। उदाहरण के लिए:
दोहा:दोहा में प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। इसमें पहली और तीसरी पंक्ति में 13-11 की मात्रा का विभाजन होता है।
उदाहरण:
कविता क्या कहिए, बने सुबोध।
बनि जाए रसखान, कष्ट सहे संजोग।
चौपाई: चौपाई में प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं। इसमें चार पंक्तियों का एक समूह बनता है।
उदाहरण:
रामचरितमानस, सुंदर कांड।
पाठ करें श्रद्धा, पाए साक्षात राम।
कुछ महत्वपूर्ण छंद
दोहा
उदाहरण:
हरि अनंत, हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहु विधि सब संता॥
चौपाई
उदाहरण:
रामचंद्र के गुन गाहक।
सुनी प्रभु की बात सराहक॥
सोरठा
उदाहरण:
तात कबहुँ मोहि जानि, कीन्हेसि यह कदर।
जो अबहीं जानि राखेउँ, लाज अबल अघर॥
रौला
उदाहरण:
चंद्रकिरण सा रूप तेरा, मन मोहक साज।
छवि देखकर जानकी, पुलकित हो गई आज॥
अर्धाली
उदाहरण:
रात अंधेरी छाई, जगी नारी।
प्रिय की प्रतीक्षा में, कहे पुकार॥
छंदों के और भी कई प्रकार होते हैं, जो अलग-अलग मात्राओं और वर्णों के संयोजन से बनते हैं। यहाँ कुछ अन्य प्रमुख छंदों का उल्लेख किया जा रहा है:
हरिगीतिका
उदाहरण:
नव विकसित कमल, बन सखी संग सीतल।
मन बसंत ऋतु, गा रही कोकिल।
सवैया
उदाहरण:
कृष्ण कन्हैया, मुरली मनोहर।
प्रेम सुधा बरसावे, राधा संग गोप।
कुण्डलिया
उदाहरण:
सूरज किरने तेज, मन भावे स्नेह।
जग मंगले हर्षावे, चहुँ ओर करे नेह।
छंद हिंदी कविता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये कविता को सुगम, आकर्षक और प्रभावी बनाते हैं। छंदों का प्रयोग प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक हर युग में होता आया है। छंद रचना का ज्ञान कवियों के लिए अनिवार्य है ताकि वे अपनी कविताओं में उचित छंदों का प्रयोग कर सकें और कविता को सुंदर और प्रभावशाली बना सकें।
छंद क्या है? इसका क्या महत्व है कविता में?
उत्तर: छंद एक नियमबद्ध रचना है जिसमें वर्ण, मात्राएँ और यतियाँ का विशेष क्रम होता है। छंद कविता में लय, माधुर्य और संगीतता को प्रदान करता है। यह कविता को सुगम और प्रभावी बनाने में सहायक होता है, जिससे पाठक और सुनने वाले को अधिक आकर्षित किया जा सकता है।
वर्णिक छंद और मात्रिक छंद में क्या अंतर है?
उत्तर: वर्णिक छंद में वर्णों की संख्या का विशेष महत्व होता है, जबकि मात्रिक छंद में मात्राओं की संख्या का ध्यान रखा जाता है। वर्णिक छंद जैसे कि अनुष्टुप में प्रत्येक पंक्ति में निश्चित वर्ण संख्या होती है, जबकि मात्रिक छंद जैसे दोहा में प्रत्येक पंक्ति में निश्चित मात्राओं की संख्या होती है।
दोहा के उदाहरण और उनके लाभ क्या हैं?
उत्तर: दोहा छंद में प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। इसके द्वारा कवि अपनी भावनाओं को एक संगीतमय और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त कर सकता है। यह कविता में माधुर्य और सौंदर्य को बढ़ाने में मदद करता है और पाठकों को भी उसकी संवेदनाओं में ज्यादा संवेदनशील बनाता है।
छंद रचना में कौन-कौन से नियम होते हैं?
उत्तर: छंद रचना में वर्ण गणना, मात्रा गणना, यति और अंत्यानुप्रास जैसे नियम होते हैं। ये नियम छंद की लय और संगीतता को बनाए रखने में सहायक होते हैं और कविता को सुंदर और प्रभावशाली बनाने में मदद करते हैं।
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