संधि - परिभाषा, प्रकार, नियम, उदाहरण
संधि :- शब्द का अर्थ होता है - जोड़। जब दो शब्द या वर्ण मिलकर एक नया शब्द या वर्ण बनाते हैं, तो उसे संधि कहते हैं। संधि का प्रयोग हिंदी भाषा में शब्दों को अधिक प्रभावी और संक्षिप्त बनाने के लिए किया जाता है।
संधि की अन्य परिभाषाएं-
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संधि वह प्रक्रिया है जिसमें दो शब्द या वर्ण आपस में मिलकर एक नया शब्द या वर्ण बनाते हैं। यह हिंदी भाषा में उच्चारण और लेखन को सरल और प्रभावी बनाता है।
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संधि का तात्पर्य है - दो स्वरों या व्यंजनों का मेल जिससे एक नया स्वर या व्यंजन उत्पन्न होता है। यह प्रक्रिया हिंदी भाषा के शब्दों को संक्षिप्त और सुगम बनाने में सहायक होती है।
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संधि वह व्याकरणिक प्रक्रिया है जिसमें दो वर्ण (स्वर या व्यंजन) आपस में मिलकर एक नया उच्चारण या रूप धारण करते हैं। यह शब्दों के संक्षिप्त और प्रभावी उच्चारण में मदद करती है।
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संधि का अर्थ होता है - जोड़ना। यह प्रक्रिया हिंदी भाषा में तब होती है जब दो शब्द या वर्ण मिलकर एक नया स्वर या व्यंजन उत्पन्न करते हैं, जिससे शब्दों का उच्चारण और लेखन अधिक सुगम बन जाता है।
संधि के उदाहरण
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विद्या + आलय = विद्यालय
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राम + आलय = रामालय
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गुरु + ईश्वर = गुरुईश्वर
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प्र + एषः = प्रेषः
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हरि + इन्द्र = हर्यिन्द्र
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सुख + ईश = सुक्विश
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तत् + त्वम् = तत्त्वम्
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स: + जः = सज्जः
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नः + काले = नःकाले
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तपः + फलं = तपःफलं
संधि के प्रकार
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स्वर संधि
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व्यंजन संधि
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विसर्ग संधि
स्वर संधि
परिभाषा 1: स्वर संधि वह प्रक्रिया है जिसमें दो स्वरों के मिलने से एक नया स्वर उत्पन्न होता है। यह उच्चारण और लेखन को अधिक सरल और प्रभावी बनाती है।
परिभाषा 2: जब दो स्वरों के मिलन से एक नया स्वर उत्पन्न होता है, तब उस प्रक्रिया को स्वर संधि कहते हैं। यह प्रक्रिया हिंदी भाषा में शब्दों को संक्षिप्त और सुगम बनाती है।
परिभाषा 3: स्वर संधि वह व्याकरणिक प्रक्रिया है जिसमें दो स्वरों के मिलन से एक नया उच्चारण या स्वर उत्पन्न होता है, जिससे शब्दों का सही उच्चारण और लेखन संभव हो पाता है।
स्वर संधि के भेद
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दीर्घ संधि
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गुण संधि
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वृद्धि संधि
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यण संधि
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अयादि संधि
1. दीर्घ संधि
जब दो सजातीय स्वर (अ, आ), (इ, ई), या (उ, ऊ) आसपास आते हैं, तो उनके मेल से उन्हें दीर्घ स्वर कहा जाता है। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं। यानी, जब एक स्वर के बाद उसी प्रकार का दूसरा स्वर आता है, तो वे मिलकर एक दीर्घ स्वर बना देते हैं। जैसे कि:
- जब (अ, आ) के साथ (अ, आ) होते हैं, तो 'आ' बनता है।
- जब (इ, ई) के साथ (इ, ई) होते हैं, तो 'ई' बनता है।
- जब (उ, ऊ) के साथ (उ, ऊ) होते हैं, तो 'ऊ' बनता है।
अ + अ = आ
- जल + अंजन = जलाञ्जन
- भूत + अतीत = भूतातीत
- पत्थर + अंबा = पत्थरांबा
- नगर + अंजर = नगरांजर
- योग + अष्टक = योगाष्टक
अ + आ = आ
- मन + आत्मा = मनात्मा
- जीवन + आयु = जीवनायुष
- पवन + आस = पवानास
- पतन + आत्मा = पतनात्मा
- वचन + आदर = वचनादर
आ + अ = आ
- चाय + अर्पण = चायार्पण
- भूत + अपमान = भूतापमान
- काया + अनमोल = कयामोल
- दाया + असर = दयासर
- नाया + अध्याय = नायाध्याय
इ + इ = ई
- सखी + इंदु = सखीन्दु
- ऋषि + इष्ट = ऋषीष्ट
- नदी + इश = नदीश
- कवि + इंद्र = कवींद्र
- मति + ईश्वर = मतीश्वर
इ + ई = ई
- स्त्री + ईश्वर = स्त्रीश्वर
- गुरु + ईश्वर = गुरूश्वर
- नदी + ईश = नदीश
- मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
- माता + ईश = मातेश
ई + इ = ई
- देवी + इश्वर = देवीश्वर
- पृथ्वी + इन्द्र = पृथ्वीन्द्र
- रानी + इच्छा = रानीच्छा
- गंगा + इश = गंगेश
- लक्ष्मी + इश = लक्ष्मीश
ई + ई = ई
- गंगा + ईश्वर = गंगेश्वर
- लक्ष्मी + ईश्वर = लक्ष्मीश्वर
- सती + ईश्वर = सतीश्वर
- श्रद्धा + ईश = श्रद्धेश
- कामिनी + ईश = कामिनेश
उ + उ = ऊ
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- बालक + उद्धार = बालकुद्धार
- धनु + उत्सव = धनूोत्सव
- विद्यु + उत्तरण = विद्युत्तरण
- तनु + उदार = तनूदार
उ + ऊ = ऊ
- सु + उत्सव = सूत्सव
- भानु + ऊर्जा = भानूर्जा
- गुरु + ऊपदेश = गुरूर्पदेश
- धानु + ऊर्ध्व = धानूर्ध्व
- वनु + ऊर्मि = वनूर्मि
ऊ + उ = ऊ
- भू + उधार = भूधार
- वधू + उदार = वधूदार
- सिंधु + उद्धार = सिंधूद्धार
- गंधू + उन्माद = गंधून्माद
- धनू + उर्ध्व = धनूर्ध्व
ऊ + ऊ = ऊ
- भू + ऊपरी = भूर्परी
- वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
- चक्रवर्ती + ऊपरी = चक्रवर्तूरि
- धरणी + ऊर्ध्व = धरणूर्ध्व
- धरनी + ऊर्जस्वल = धरनीर्जस्वल
ऋ + ऋ = ऋ
- पितृ + ऋण = पितृण
- मातृ + ऋण = मातृण
- गुरू + ऋषि = गुरूर्षि
- भक्तृ + ऋतु = भक्तृतु
- नृत्य + ऋतु = नृत्यृतु
2. गुण संधि
गुण संधि वह प्रक्रिया है जिसमें 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ', 'ऋ' आदि स्वर किसी 'अ', 'आ' आदि स्वर के साथ मिलते हैं और उनके स्थान पर गुण स्वर उत्पन्न होते हैं। यह संधि गुण स्वर के रूप में परिणत होती है, जैसे 'ए', 'ओ', आदि।
उदाहरण:
- विद्या + आलय = विद्यालय
- गुरु + ईश्वर = गुरुईश्वर
- प्र + एषः = प्रेषः
- न + ऋतु = नारित्व
गुण संधि के उदाहरण
अ + इ = ए
- जल + इंद्र = जलेंद्र
- तप + इंद्र = तपेंद्र
- मित्र + इंद्र = मित्रेंद्र
- गुरु + इंद्र = गुरुेंद्र
- महल + इंदु = महलेन्दु
- जल + इंदु = जलेंदु
- तरु + इंद्र = तरेंद्र
- शत्रु + इंद्र = शत्रेंद्र
- मणि + इच्छा = मणिच्छा
अ + ई = ए
- नर + ईश = नरेश
- यश + ईश = यशेश
- तरु + ईश = तरेश
- मित्र + ईश = मित्रेश
- गुरु + ईश्वर = गुरेश्वर
- वर + ईश्वर = वरेश्वर
- सूर्य + ईश = सुरेश
- विजय + ईश = विजयेश
- सोम + ईश्वर = सोमेश्वर
आ + इ = ए
- बल + इंद्र = बलेन्द्र
- शक्ति + इंद्र = शक्तेन्द्र
- कला + इष्ट = कलेष्ट
- जान + इंद्र = जानेन्द्र
आ + ई = ए
- कला + ईश = कलेश
- महा + ईश = महेश
- गंगा + ईश = गंगेश
- नंदा + ईश्वर = नंदेश्वर
अ + उ = ओ
- नर + उदार = नरोदार
- पद्म + उत्पल = पद्मोत्पल
- जल + उत्सव = जलोत्सव
- धर्म + उदय = धर्मोदय
- रत्न + उत्तम = रत्नोत्तम
अ + ऊ = ओ
- ब्रह्म + ऊर्ध्व = ब्रह्मोर्ध्व
- जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- विद्या + ऊर्ध्व = विद्योध्व
- मित्र + ऊर्मि = मित्रोर्मि
- भुवन + ऊर्मि = भुवोर्मि
आ + उ = ओ
- जया + उत्सव = जयोत्सव
- महा + उमंग = महोमंग
- तरा + उपकार = तरोपकार
- विद्या + उपकार = विद्योपकार
- भव + उद्धार = भवोद्धार
आ + ऊ = ओ
- कला + ऊर्मि = कलोर्मि
- नंदा + ऊर्ध्व = नंदोर्ध्व
- जान + ऊर्जा = जानोर्जा
- शान्ता + ऊर्मि = शान्तोर्मि
- घना + ऊष्मा = घनोष्मा
अ + ऋ = अर्
- वेद + ऋषि = वेदर्षि
- मित्र + ऋषि = मित्रर्षि
आ + ऋ = अर्
- तरा + ऋषि = तरर्षि
- कला + ऋषि = कलर्षि
3. वृद्धि संधि
वृद्धि संधि वह प्रक्रिया है जिसमें 'ए', 'ओ' आदि स्वर किसी 'अ', 'आ' आदि स्वर के साथ मिलते हैं और उनके स्थान पर वृद्धि स्वर उत्पन्न होते हैं। यह संधि वृद्धि स्वर के रूप में परिणत होती है, जैसे 'ऐ', 'औ' आदि।
उदाहरण:
- प्र + एषः = प्रेषः
- सु + औषधि = सौषधि
- मातृ + आलय = मातालय
- धर्म + औषधि = धर्मौषधि
अ + ए = ऐ
- मत + एकता = मतैकता
- यश + एषणा = यशैषणा
- गुण + एकता = गुणैकता
- व्रत + एषणा = व्रतैषणा
- भक्त + एकता = भक्तैकता
अ + ऐ = ऐ
- शरण + ऐश्वर्य = शरणैश्वर्य
- ध्वनि + ऐक्य = ध्वनैक्य
- लघु + ऐश्वर्य = लघुैश्वर्य
- नय + ऐक्य = नयैक्य
- प्रिय + ऐक्य = प्रियैक्य
आ + ए = ऐ
- तथा + एषणा = तथैषणा
- सदा + एषणा = सदैषणा
- महा + एकता = महैकता
- तमा + एषणा = तमैषणा
- विप्रा + एषणा = विप्रैषणा
अ + ओ = औ
- जल + ओघ = जलौघ
- तप + ओष्ठ = तपौष्ठ
- कर्म + ओषधि = कर्मौषधि
- शत्रु + ओज = शत्रौज
- नर + ओषधि = नरौषधि
अ + औ = औ
- देव + औदार्य = देवौदार्य
- धर्म + औषध = धर्मौषध
- शिव + औदार्य = शिवौदार्य
- गुरु + औषध = गुरुौषध
- कुमार + औषधि = कुमारौषधि
आ + ओ = औ
- महा + ओषधि = महौषधि
- नंदा + ओज = नंदौज
- काला + ओष्ठ = कालौष्ठ
- महान + ओषधि = महानौषधि
- नीरजा + ओज = नीरजौज
आ + औ = औ
- महा + औषधि = महौषधि
- रामा + औघ = रामौघ
- कला + औदार्य = कलौदार्य
- शिवा + औषध = शिवौषध
- राधा + औषधि = राधौषधि
4. यण संधि
यण संधि वह प्रक्रिया है जिसमें 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ', 'ऋ' आदि स्वर किसी अन्य स्वर के साथ मिलते हैं और उनके स्थान पर 'य', 'व', 'र' आदि वर्ण आते हैं। यह संधि यण स्वर के रूप में परिणत होती है।
उदाहरण:
- हरि + इन्द्र = हर्यिन्द्र
- सुख + ईश = सुक्विश
- विधि + ईश्वर = विधिश्वर
- सति + अन्वेषण = सत्यान्वेषण
यण संधि के उदाहरण
- इति + इन्द्र = इत्येन्द्र
- परी + उद्यान = पर्युद्यान
- अनु + उपदेश = अन्वुपदेश
- सु + अलंकार = स्वालंकार
- अभी + उपस्थिति = अभ्युपस्थिति
य से पूर्व आधा व्यंजन (इ / ई + असमान स्वर = य)
इ + अ = य
- मति + अर्य = मत्यार्य
- शरि + अति = शर्याति
- रति + अति = रत्याति
- धृति + अधिक = धृत्यधिक
ई + अ = य
- नदी + अमृत = नद्यामृत
इ + आ = या
- श्रुति + आचार = श्रुत्याचार
- मति + आनंद = मत्यानंद
- ऋति + आवश्यक = ऋत्यावश्यक
- शांति + आगत = शांत्यागत
- इति + आदर्श = इत्यादर्श
ई + आ = या
- सखी + आत्मा = सख्यात्मा
- देवी + आदर्श = देव्यादर्श
- नदी + आनन्द = नद्यायानन्द
- वीणा + आवर्तन = वीण्यावर्तन
इ + उ = यु
- मति + उत्तम = मत्यु्त्तम
- श्रुति + उपयोगी = श्रुत्यु्त्योगी
इ + ऊ = यू
- मति + ऊर्ध्व = मत्यूर्ध्व
- श्रुति + ऊर्जा = श्रुत्यूर्जा
ई + उ = यु
- स्त्री + उपयोग = स्त्रीयुपयोग
ई + ऊ = यू
- नदी + ऊर्जा = नद्यूरजा
इ + ए = ये
- पितृ + एक = पित्रीय
- अधि + एषणा = अध्येषणा
इ + ऐ = यै
- मति + ऐश्वर्य = मत्यैश्वर्य
ई + ऐ = यै
- सखी + ऐश्वर्य = सख्यैश्वर्य
- देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य
- नदी + ऐश्वर्य = नद्यैश्वर्य
इ + ओ = यो
- मति + ओज = मत्योज
- दधि + ओदन = दध्योदन
इ + औ = यौ
- मति + औदार्य = मत्यौदार्य
- मति + औचित्य = मत्यौचित्य
ई + औ = यौ
- वाणी + औचित्य = वाण्यौचित्य
व् से पूर्व आधा व्यंजन (उ / ऊ + असमान स्वर = व)
उ + अ = व
- अनु + अय = अन्वय
- मनु + अन्तर = मवंतर
- सु + अच्छ = स्वच्छ
- मधु + अरि = मध्वरि
- सु + अल्प = स्वल्प
उ + आ = वा
- मधु + आलय = मध्वालय
- लघु + आदि = लघ्वादि
- सु + आगत = स्वागत
उ + इ = वि
- अनु + इति = अन्विति
- अनु + इत = अन्वित
उ + ई = वी
- अनु + ईषण = अन्वीक्षण
उ + ए = वे
- प्रभु + एषणा = प्रभ्वेषणा
- अनु + एषण = अन्वेषण
उ + ऐ = वै
- अल्प + ऐश्वर्य = अल्पैश्वर्य
उ + ओ = वो
- गुरु + ओदन = गुरूओदन
- लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ
उ + औ = वौ
- गुरु + औदार्य = गुर्वौदार्य
ऊ + आ = वा
- वधू + आगम = वध्यागम
ऊ + ऐ = वै
- वधू + ऐश्वर्य = वध्वैश्वर्य
त्र युक्त शब्द (ऋ + असमान स्वर = र)
ऋ + अ = र
- पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
- धातृ + अंश = धात्रांश
ऋ + आ = रा
- पितृ + आदेश = पित्रादेश
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
- मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
- मातृ + आनंद = मात्रानंद
ऋ + इ = रि
- पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
- मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
ऋ + उ = रु
- मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश
अयादि संधि
अयादि संधि वह प्रक्रिया है जिसमें 'ए', 'ऐ', 'ओ', 'औ' आदि स्वरों का मिलन 'अ' से होने पर 'आय' या 'अव' स्वर उत्पन्न होते हैं। यह संधि हिंदी भाषा के उच्चारण और लेखन को सरल और सुगम बनाती है।
अयादि संधि के उदाहरण
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इन्द्र + इश्वर = इन्द्रेश्वर
- यहां पर 'इन्द्र' और 'इश्वर' मिलकर 'इन्द्रेश्वर' बनता है।
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अग्नि + इष्ट = अग्न्यिष्ट
- यहां पर 'अग्नि' और 'इष्ट' मिलकर 'अग्न्यिष्ट' बनता है।
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ऋषि + उषा = ऋष्युषा
- यहां पर 'ऋषि' और 'उषा' मिलकर 'ऋष्युषा' बनता है।
-
वात + एषा = वातेषा
- यहां पर 'वात' और 'एषा' मिलकर 'वातेषा' बनता है।
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दिशा + आकाश = दिशाकाश
- यहां पर 'दिशा' और 'आकाश' मिलकर 'दिशाकाश' बनता है।
अयादि संधि के उदाहरण
- ने + अन = नयन
- नौ + इक = नाविक
- भो + अन = भवन
- पो + इत्र = पवित्र
- भौ + उक = भावुक
ए + अ = अय
- शे + अन = शयन
- ने + अन = नयन
- चे + अन = चयन
ऐ + अ = आय
- गै + अक = गायक
- नै + अक = नायक
ओ + अ = अव्
- भो + अन = भवन
- पो + अन = पवन
- श्रो + अन = श्रवण
औ + अ = आव्
- श्रौ + अन = श्रावण
- पौ + अन = पावन
- पौ + अक = पावक
औ + इ = आवि
- पौ + इत्र = पवित्र
- नौ + इक = नाविक
विस्तृत विवरण
अयादि संधि की प्रक्रिया:अयादि संधि में, जब 'ए', 'ऐ', 'ओ', 'औ' आदि स्वरों का मिलन 'अ' स्वर के साथ होता है, तब स्वरांतरित होकर 'आय' या 'अव' ध्वनियों का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया हिंदी भाषा में शब्दों को संक्षिप्त, सुगम, और प्रभावी बनाने में सहायक होती है। उदाहरण के तौर पर, 'इन्द्र' और 'इश्वर' मिलकर 'इन्द्रेश्वर' बनाते हैं, जिसमें स्वरांतरित ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं।
2. व्यंजन संधि
जब दो व्यंजन या स्वर और व्यंजन के मेल से जो ध्वनि परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
नियम :जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये, तो क् को ग्, च् को ज्, ट् को ड्, त् को द्, और प् को ब् में बदल दिया जाता है। अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी, वह हलन्त वर्ण में लग जाएगी। लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है, तो वे हलन्त ही रहेंगे।
उदाहरण:
- क्षेत्र + आगमन = क्षेत्रागमन (त्र + आ = त्रा)
- प्रचार + उपासना = प्रचारुपासना (च + उ = चु)
- वक्ता + उच्चारण = वक्ताउच्चारण (क्त + उ = क्तु)
व्यंजन संधि के नियम
1. वर्णों का परस्पर मिलन:
यह नियम वर्णों के वर्ग के आधार पर लागू होता है।
जब किसी वर्ग के पहले अक्षर (क, च, ट, त, प) का मिलन किसी अन्य वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से होता है, या य, र, ल, व, ह से या किसी स्वर से होता है, तो कुछ परिवर्तन होते हैं।
- क वर्ण ग में बदल जाता है (क् > ग्)
- च वर्ण ज में बदल जाता है (च् > ज्)
- ट वर्ण ड में बदल जाता है (ट् > ड्)
- त वर्ण द में बदल जाता है (त् > द्)
- प वर्ण ब में बदल जाता है (प् > ब्)
यदि स्वर से मिलन होता है, तो स्वर की मात्रा हलंत वर्ण में लग जाएगी।
यदि व्यंजन से मिलन होता है, तो वे हलंत ही रहेंगे।
उदाहरण:
वर्ग के पहले अक्षरों का स्वर से मिलन:
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर (क् > ग्)
- वाक् + ईश = वागीश (क् > ग्)
वर्ग के पहले अक्षरों का व्यंजन से मिलन:
- अच् + अन्त = अजन्त (च् > ज्)
- षट् + दर्शन = षडदर्शन (ट् > ड्)
- तत् + उपरान्त = तदुपरान्त (त् > द्)
2. अनुस्वार और व्यंजन का मिलन:
यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट, त, प) का मिलन न या म वर्ण (ङ, ञ, ज, ण, न, म) से होता है, तो कुछ और परिवर्तन होते हैं।
- क वर्ण ङ् में बदल जाता है (क् > ङ्)
- च वर्ण ज् में बदल जाता है (च् > ज्)
- ट वर्ण ण् में बदल जाता है (ट् > ण्)
- त वर्ण न् में बदल जाता है (त् > न्)
- प वर्ण म् में बदल जाता है (प् > म्)
उदाहरण:
वर्ग के पहले अक्षरों का अनुस्वार से मिलन:
- वाक् + मय = वाङ्मय (क् > ङ्)
- षट् + मास = षण्मास (ट् > ण्)
जब किसी शब्द में "त" का मिलन "ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर" से होता है, तो "त" बदलकर "द" हो जाता है।
यदि "म" का मिलन वर्णमाला के किसी भी अन्य व्यंजन (क से लेकर म तक) से होता है, तो "म" अनुस्वार (ँ) में बदल जाता है। हालांकि, कुछ अपवाद भी हैं जिनको याद रखना आवश्यक है।
उदाहरण:
- सत् + भावना = सद्भावना (त बदलकर द हो गया)
- जगत् + ईश = जगदीश (त बदलकर द हो गया)
- भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति (त बदलकर द हो गया)
- तत् + रूप = तद्रूप (त बदलकर द हो गया)
- सत् + धर्म = सद्धर्म (त बदलकर द हो गया)
- सम् + तोष = सन्तोष/संतोष (त बदलकर द हो गया)
4. त् और अन्य व्यंजन का मिलन:
- जब "त" के बाद "च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, ण या ल" आता है, तो कुछ परिवर्तन होते हैं:
- त् + च/छ = ज् (उदाहरण: उत् + चारण = उच्चारण)
- त् + ज/झ = ज् (उदाहरण: सत् + जन = सज्जन)
- त् + ट/ठ = ट् (उदाहरण: तत् + टीका = तट्टीका)
- त् + ड/ढ = ड् (उदाहरण: उत् + डयन = उड्डयन)
- त् + ल = ल् (उदाहरण: उत् + लास = उल्लास)
विशेष परिवर्तन:
- यदि "त" के बाद "श" आता है, तो "त" बदलकर "च" हो जाता है और "श" बदलकर "छ" हो जाता है। (उदाहरण: उत् + श्वास = उच्छ्वास)
- जब "त" या "द" के बाद "च" या "छ" आता है, तो "त" या "द" बदलकर "च" हो जाता है। (उदाहरण: उत् + छिन्न = उच्छिन्न)
5. त् और ह का मिलन:
- जब "त" का मिलन "ह" से होता है, तो "त" बदलकर "द" हो जाता है और "ह" बदलकर "ध" हो जाता है। (उदाहरण: उत् + हार = उद्धार)
- जब "त" या "द" के बाद "ज" या "झ" आता है, तो "त" या "द" बदलकर "ज्" हो जाता है। (उदाहरण: सत् + जन = सज्जन)
6. त् का विशेष परिवर्तन:
- यदि "त" के बाद "श" आता है, तो "त" बदलकर "च" हो जाता है और "श" बदलकर "छ" हो जाता है। (उदाहरण: उत् + श्वास = उच्छ्वास)
- जब "त" या "द" के बाद "च" या "छ" आता है, तो "त" या "द" बदलकर "च" हो जाता है। (उदाहरण: उत् + छिन्न = उच्छिन्न)
7. स्वर के बाद छ का विशेष नियम :
- तत् + टीका = तट्टीका (त बदलकर ट हो गया और स्वर से पहले च का वर्ण बढ़ा दिया गया)
- वृहत् + टीका = वृहट्टीका (त बदलकर ट हो गया और स्वर से पहले च का वर्ण बढ़ा दिया गया)
- भवत् + डमरू = भवड्डमरू (त बदलकर ड हो गया)
8. म और अन्य व्यंजन का मिलन:
- यदि "म" के बाद वर्णमाला के किसी भी व्यंजन (क से लेकर म तक) का मिलन होता है, तो "म" अनुस्वार (ँ) में बदल जाता है।
- अपवाद: जब "म" के बाद "य, र, ल, व, श, ष, स या ह" आता है, तो "म" वहीं रहता है।
उदाहरण:
- म + क से लेकर म तक के व्यंजन (कुछ अपवादों को छोड़कर):
- किम् + चित = किंचित (म अनुस्वार में बदला गया)
- सम् + कल्प = संकल्प/सटड्डन्ल्प (म अनुस्वार में बदला गया)
- सम् + चय = संचय (म वहीं रहता है)
9. म और म का मिलन:
- जब "म" के बाद "म" आता है, तो उन दोनों का द्वित्व हो जाता है। (उदाहरण: सम् + मति = सम्मति)
10. म और अन्य व्यंजन (विशेष नियम):
- जब "म" के बाद "य, र, ल, व, श, ष, स या ह" में से कोई व्यंजन आता है, तो "म" अनुस्वार (ँ) में बदल जाता है।
- जब "त" या "द" के साथ "श" आता है, तो "त" या "द" बदलकर "च" हो जाता है और "श" बदलकर "छ" हो जाता है।
11. न और अन्य व्यंजन का मिलन:
- जब "ऋ, र् या ष्" के बाद "न" आता है और उसके बाद किसी शब्द में कोई स्वर, क, ख, ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण होकर "न" से मिलन होता है, तो "न" बदलकर "ण" हो जाता है।
- हालाँकि, चवर्ग (च, छ, ज, झ), टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ) और तवर्ग (त, थ, द, ध) के साथ, श और स के बाद "न" का "ण" में रूप नहीं बदलता।
उदाहरण:
- ऋ, र् या ष् के बाद न (विशेष नियम):
- परि + नाम = परिणाम (न बदलकर ण हो गया)
- प्र + मान = प्रमाण (न बदलकर ण हो गया)
- न (अन्य नियम):
- आ + छादन = आच्छादन (स्वर से पहले च का वर्ण आ गया)
- शाला + छादन = शालाच्छादन (स्वर से पहले च का वर्ण आ गया)
12. स् का रूप परिवर्तन:
- वि + सम = विषम (स् बदलकर ष हो गया क्योंकि स्वर अ या आ नहीं है)
- अभि + सिक्त = अभिषिक्त (स् बदलकर ष हो गया क्योंकि स्वर अ या आ नहीं है)
- अनु + संग = अनुषंग (स् बदलकर ष हो गया क्योंकि स्वर अ या आ नहीं है)
उदाहरण:
- भ + स् के मिलन पर भी यही नियम लागू होता है।
- अभि + सेक = अभिषेक (स् बदलकर ष हो गया क्योंकि स्वर अ या आ नहीं है)
- नि + सिद्ध = निषिद्ध (स् बदलकर ष हो गया क्योंकि स्वर अ या आ नहीं है)
13. द और अन्य व्यंजन का मिलन:
- जब "द" का मिलन "क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स या ह" में से किसी भी व्यंजन से होता है, तो "द" बदलकर "त" हो जाता है।
उदाहरण:
- तद् + पर = तत्पर (द बदलकर त हो गया)
- सद् + कार = सत्कार (द बदलकर त हो गया)
- राम + अयन = रामायण (द बदलकर त हो गया - हालाँकि यह नियम सिर्फ सन्धि के कारण उत्पन्न होता है, रामायण शब्द में मूल रूप से द है)
विसर्ग संधि
विसर्ग संधि का अर्थ होता है - जब किसी शब्द के अंत में विसर्ग (:) होता है और दूसरे शब्द के आरंभ में स्वर या व्यंजन आता है, तब विसर्ग में होने वाले रूप परिवर्तन को विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के उदाहरण
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल (विसर्ग का 'ओ' में परिवर्तन)
- निः + अक्षर = निरक्षर (विसर्ग का लोप हो गया)
- निः + पाप = निष्पाप (विसर्ग का 'ष्' में परिवर्तन)
विसर्ग संधि के नियम
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विसर्ग और च/छ का मेल:
विसर्ग के बाद च या छ आने पर विसर्ग 'श' में बदल जाता है। हालाँकि, अगर विसर्ग से पहले 'अ' है और बाद में भी 'अ' या वर्गो के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व वर्ण आते हैं, तो विसर्ग 'ओ' में बदल जाता है।
उदाहरण:
- मनः + चेतना = मनश्चेतना (विसर्ग का 'श' में परिवर्तन)
- अधः + गति = अधोगति (विसर्ग का 'ओ' में परिवर्तन)
- मनः + बल = मनोबल (विसर्ग का 'ओ' में परिवर्तन)
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विसर्ग और स्वर/व्यंजन का मेल:
अगर विसर्ग से पहले अ, आ के अलावा कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर, वर्गो के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग 'र' में बदल जाता है। विसर्ग के साथ 'श' का मेल होने पर भी विसर्ग 'श' ही बनता है।
उदाहरण:
- दुः + शासन = दुःशासन (विसर्ग का 'श' में परिवर्तन)
- यशः + शरीर = यशःशरीर (विसर्ग का 'श' बना हुआ है)
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विसर्ग और च/छ/श/ट/ठ/ष का मेल:
अगर विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श आए, तो विसर्ग 'श' में बदल जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग 'ष्' में बदल जाता है।
उदाहरण:
- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार (विसर्ग का 'ष्' में परिवर्तन)
- निः + चल = निश्चल (विसर्ग का 'श' में परिवर्तन)
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विसर्ग और त/स का मेल:
अगर विसर्ग के बाद त या स आए, तो विसर्ग 'स्' में बदल जाता है। हालाँकि, अगर विसर्ग से पहले अ, आ के अलावा कोई स्वर हो और बाद में क, ख, प, फ में से कोई वर्ण आए, तो विसर्ग 'ष्' में बदल जाता है।
उदाहरण:
- निः + कलंक = निष्कलंक (विसर्ग का 'ष्' में परिवर्तन)
- दुः + कर = दुष्कर (विसर्ग का 'ष्' में परिवर्तन)
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विसर्ग और इ/उ/क/ख/प/फ का मेल:
अगर विसर्ग से पहले इ या उ का स्वर हो और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण आए, तो विसर्ग 'ष' में बदल जाता है
उदाहरण:
- अधः + पतन = अधःपतन (विसर्ग का 'ष' में परिवर्तन)
6. विसर्ग और अ/आ/व्यंजन का मेल :
- अगर विसर्ग से पहले अ, आ का स्वर हो और बाद में कोई भिन्न व्यंजन आए, तो विसर्ग लोप हो जाता है। हालांकि, विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग 'स्' में बदल जाता है।
उदाहरण:
- अन्तः + तल = अन्तस्तल (विसर्ग का लोप)
- निः + ताप = निस्ताप (विसर्ग का लोप)
7. विसर्ग और क/ख/प/फ का मेल:
- अगर विसर्ग के बाद क, ख या प, फ आए, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ 'स' के मेल पर विसर्ग 'स्' में बदल जाता है।
उदाहरण:
- निः + सन्देह = निस्सन्देह (विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं)
8. विसर्ग और इ/उ/र का मेल:
- अगर विसर्ग से पहले इ या उ का स्वर हो और बाद में र आए, तो विसर्ग लोप हो जाता है और इ/उ की मात्रा क्रमशः ई/ऊ हो जाती है।
उदाहरण:
- निः + रस = नीरस (विसर्ग का लोप, इ की मात्रा ई में बदली)
9. विसर्ग और अ/अकेले स्वर का मेल:
- अगर विसर्ग से पहले अ का स्वर हो और बाद में अ के अलावा कोई स्वर आए, तो विसर्ग लोप हो जाता है।
उदाहरण:
- अतः + एव = अतएव (विसर्ग का लोप)
10. विसर्ग और अ/व्यंजन (अ, ग, घ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह को छोड़कर) का मेल:
- अगर विसर्ग से पहले अ का स्वर हो और बाद में अ, ग, घ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से कोई भी वर्ण आए, तो विसर्ग 'ओ' में बदल जाता है।
उदाहरण:
- मनः + अभिलाषा = मनोभिलाषा (विसर्ग का 'ओ' में परिवर्तन)
विसर्ग संधि के अपवाद
कुछ शब्दों में विसर्ग संधि के नियमों में अपवाद भी पाए जाते हैं, जिनको याद रखना आवश्यक होता है। इन अपवादों को शब्दों के प्रयोग द्वारा सीखा जाता है।
उदाहरण:
- पुनः + अवलोकन = पुनरवलोकन (विसर्ग का लोप नहीं हुआ)
- अन्तः + द्वन्द्व = अन्तर्द्वन्द्व (विसर्ग का 'र' में परिवर्तन नहीं हुआ)
अभ्यास प्रश्न
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संधि की परिभाषा दीजिए।
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निम्नलिखित शब्दों में संधि विच्छेद कीजिए:
- रामायण, देवेन्द्र, गिरीश, पथ्य, मित्र
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स्वर संधि के प्रकारों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
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निम्नलिखित संधियों का नाम लिखिए और उनका संधि विच्छेद कीजिए:
- तद्रूप, सन्नच, लोकभवति, दुःखा
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विसर्ग संधि के प्रकारों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
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निम्नलिखित वाक्यों में संधि का प्रयोग कीजिए:
उत्तर:
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संधि की परिभाषा: दो शब्दों या ध्वनियों के मेल से जो नया शब्द या ध्वनि उत्पन्न होती है उसे संधि कहते हैं।
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संधि विच्छेद:
- रामायण = राम + अयन
- देवेन्द्र = देव + इन्द्र
- गिरीश = गिरी + ईश
- पथ्य = पथि + अ
- मित्र = मित्र + आ
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स्वर संधि के प्रकार:
- दीर्घ संधि: राम + अयन = रामायण
- गुण संधि: गिरी + ईश = गिरीश
- वृद्धि संधि: देव + इन्द्र = देवेन्द्र
- यण संधि: पथि + अ = पथ्य
- अयादि संधि: मित्र + आ = मित्र
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संधियों का नाम और संधि विच्छेद:
- तद्रूप = तद् + रूप (परसवर्ण संधि)
- सन्नच = सन् + च (परसवर्ण संधि)
- लोकभवति = लोकः + भवति (विसर्ग संधि)
- दुःखा = दुःखः + का (विसर्ग संधि)
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विसर्ग संधि के प्रकार:
- जगन्न = जगः + अन्न
- लोकेन्द्र = लोकः + इन्द्र
- कर्मोत्तम = कर्मः + उत्तम
- गुरुर्षि = गुरुः + ऋषि
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वाक्यों में संधि का प्रयोग:
- वह गुरु है। → वह गुरुः है।
- यह मित्र है। → यह मित्रः है।
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