क्रिया - परिभाषा, भेद, और उदाहरण
क्रिया: क्रिया वह शब्द है जो वाक्य में किसी कार्य, घटना या अवस्था का बोध कराता है। क्रिया वाक्य का महत्वपूर्ण भाग होती है और इसके बिना वाक्य का कोई मतलब नहीं होता। यह बताती है कि क्या हो रहा है, क्या किया जा रहा है, या किसी स्थिति में क्या हो रहा है।
क्रिया की परिभाषा: "क्रिया वह शब्द है जो किसी कार्य, घटना या स्थिति का बोध कराता है।" उसे क्रिया कहते हैं।
उदाहरण-
- मोहन दौड़ रहा है। (दौड़ रहा है - क्रिया)
- सीता खाना बना रही है। (बना रही है - क्रिया)
- वे स्कूल जा रहे हैं। (जा रहे हैं - क्रिया)
- पक्षी उड़ रहे हैं। (उड़ रहे हैं - क्रिया)
इन वाक्यों में 'दौड़ रहा है', 'बना रही है', 'जा रहे हैं', और 'उड़ रहे हैं' क्रियाएं हैं जो क्रमशः दौड़ने, बनाने, जाने, और उड़ने की क्रिया का बोध कराती हैं।
हिंदी व्याकरण में धातु का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह क्रिया का मूल रूप होता है। धातु के आधार पर ही विभिन्न क्रियाओं का निर्माण होता है। धातु मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं: मूल धातु और यौगिक धातु। नीचे इन दोनों भेदों के बारे में विस्तार से समझाया गया है।
1. मूल धातु (Primary Root): मूल धातु वह धातु होती है जो स्वतंत्र रूप से उपयोग की जाती है और इसे बनाने के लिए किसी अन्य शब्द की आवश्यकता नहीं होती। यह सबसे सरल रूप होती है और इससे सीधे-सीधे क्रिया का निर्माण होता है।
उदाहरण-
- चल (चलना)
- पढ़ (पढ़ना)
- देख (देखना)
- लिख (लिखना)
इन उदाहरणों में "चल," "पढ़," "देख," और "लिख" मूल धातुएँ हैं जो सीधे क्रियाओं का निर्माण करती हैं।
2. यौगिक धातु (Compound Root):
यौगिक धातु वह धातु होती है जो दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर बनाई जाती है। यौगिक धातुएं विभिन्न प्रकार से बनाई जा सकती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
(i) पद-पद योग (Word-Word Combination): जब दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर क्रिया बनाई जाती है, तो उसे पद-पद योग कहते हैं।
उदाहरण-
- गाना-बजाना
- चलना-फिरना
- हँसना-रोना
इन उदाहरणों में "गाना-बजाना," "चलना-फिरना," और "हँसना-रोना" पद-पद योग द्वारा बनाई गई यौगिक धातुएं हैं।
(ii) प्रत्यय-योग (Suffix Combination): जब किसी धातु में प्रत्यय (suffix) जोड़कर क्रिया बनाई जाती है, तो उसे प्रत्यय-योग कहते हैं।
उदाहरण-
- बोलना (बोल + ना)
- चलाना (चल + आना)
- खिलाना (खिल + आना)
इन उदाहरणों में "बोलना," "चलाना," और "खिलाना" प्रत्यय-योग द्वारा बनाई गई यौगिक धातुएं हैं।
(iii) समास-योग (Compound Combination): जब दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर, उनमें से किसी एक शब्द का लोप करके क्रिया बनाई जाती है, तो उसे समास-योग कहते हैं।
उदाहरण-
- चलना (चल् + ना)
- उड़ना (उड्ड + ना)
- पढ़ना (पढ़् + ना)
इन उदाहरणों में "चलना," "उड़ना," और "पढ़ना" समास-योग द्वारा बनाई गई यौगिक धातुएं हैं।
यौगिक धातु के अन्य प्रकार
(i) प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb): प्रेरणार्थक क्रिया वह क्रिया होती है जो किसी को कोई कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। यह क्रिया यह दर्शाती है कि कर्ता किसी अन्य व्यक्ति को किसी कार्य के लिए प्रेरित कर रहा है।
उदाहरण-
- सिखाना (सिख + आना)
- बिठाना (बैठ + आना)
- जगाना (जग + आना)
इन उदाहरणों में "सिखाना," "बिठाना," और "जगाना" प्रेरणार्थक क्रियाएं हैं जो किसी को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।
(ii) नाम धातु (Nominal Verb): नाम धातु वह क्रिया होती है जो किसी संज्ञा या विशेषण से बनाई जाती है। यह क्रिया संज्ञा या विशेषण के आधार पर बनती है और उसी से संबंधित कार्य को दर्शाती है।
उदाहरण-
- गाना (गान से)
- पानी देना (पानी से)
- बात करना (बात से)
इन उदाहरणों में "गाना," "पानी देना," और "बात करना" नाम धातुएं हैं जो संज्ञा या विशेषण से बनी हैं।
क्रिया का मूल रूप: धातु क्रिया का मूल रूप होता है और इससे ही क्रिया के विभिन्न रूप बनते हैं।
क्रियाओं का निर्माण: धातु से ही क्रियाओं का निर्माण होता है और इससे वाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है।
भाषा का विकास: धातुओं के ज्ञान से भाषा का सही प्रयोग और विकास संभव होता है।
क्रिया के भेद
क्रिया के मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं-
- कर्म के आधार पर
- काल के आधार पर
- वाच्य के आधार पर
कर्म के आधार पर क्रियाएं-
सकर्मक क्रिया (Transitive Verb): सकर्मक क्रिया वह क्रिया होती है जिसमें क्रिया का कार्य किसी वस्तु या व्यक्ति पर होता है, जिसे कर्म कहा जाता है। सकर्मक क्रिया में कार्य के निष्पादन के लिए किसी कर्म की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की क्रिया में क्रिया का परिणाम स्पष्ट रूप से किसी न किसी पर पड़ता है, यानी कर्म पर।
उदाहरण-
- मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। (यहाँ "पुस्तक" कर्म है)
- राधा खाना बना रही है। (यहाँ "खाना" कर्म है)
- राम ने चिट्ठी लिखी। (यहाँ "चिट्ठी" कर्म है)
इन वाक्यों में, "पुस्तक," "खाना," और "चिट्ठी" क्रमशः क्रियाओं "पढ़ रहा है," "बना रही है," और "लिखी" के कर्म हैं। ये सभी वाक्य सकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं क्योंकि इन क्रियाओं का कार्य किसी न किसी वस्तु या व्यक्ति पर हो रहा है।
अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb): अकर्मक क्रिया वह क्रिया होती है जिसमें क्रिया का कार्य किसी वस्तु या व्यक्ति पर नहीं होता है। दूसरे शब्दों में, यह क्रिया कर्म के बिना ही पूरी होती है। अकर्मक क्रिया में केवल कर्ता का ही उल्लेख होता है, और कोई कर्म नहीं होता।
उदाहरण-
- रमा रो रही है। (यहाँ कोई कर्म नहीं है)
- पक्षी उड़ रहे हैं। (यहाँ कोई कर्म नहीं है)
- बच्चा सो रहा है। (यहाँ कोई कर्म नहीं है)
इन वाक्यों में, "रो रही है," "उड़ रहे हैं," और "सो रहा है" क्रमशः अकर्मक क्रियाएं हैं क्योंकि इन क्रियाओं का कार्य किसी वस्तु या व्यक्ति पर नहीं हो रहा है। ये सभी वाक्य अकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं क्योंकि इनमें केवल कर्ता का ही उल्लेख है और कोई कर्म नहीं है।
सकर्मक क्रिया में क्रिया का कार्य किसी वस्तु या व्यक्ति पर होता है, जबकि अकर्मक क्रिया में क्रिया का कार्य किसी वस्तु या व्यक्ति पर नहीं होता है। सकर्मक क्रिया के लिए एक कर्म की आवश्यकता होती है, जबकि अकर्मक क्रिया के लिए नहीं होती है।
क्रिया के समय की दृष्टि से तीन मुख्य प्रकार होते हैं: वर्तमान काल, भूतकाल, और भविष्यकाल। प्रत्येक काल का उपयोग क्रिया के समय के आधार पर किया जाता है।
1. वर्तमान काल (Present Tense): वर्तमान काल की क्रिया वह होती है जो वर्तमान समय में हो रही होती है। यह क्रिया वर्तमान समय में घटित हो रही घटना या कार्य को दर्शाती है। यह समय के उस पल को दिखाती है जब क्रिया की जा रही है या हो रही है।उदाहरण-
- मैं खाना खा रहा हूँ। (यह क्रिया अभी वर्तमान समय में हो रही है)
- वह पढ़ाई कर रहा है। (यह क्रिया अभी वर्तमान समय में हो रही है)
- वे खेल रहे हैं। (यह क्रिया अभी वर्तमान समय में हो रही है)
इन वाक्यों में "खा रहा हूँ," "पढ़ाई कर रहा है," और "खेल रहे हैं" वर्तमान काल की क्रियाएं हैं क्योंकि ये सभी कार्य वर्तमान समय में हो रहे हैं।
2. भूतकाल (Past Tense): भूतकाल की क्रिया वह होती है जो पहले हो चुकी है। यह क्रिया उस घटना या कार्य को दर्शाती है जो पहले संपन्न हो चुकी है। यह समय के उस पल को दिखाती है जब क्रिया पूरी हो चुकी थी।
उदाहरण-
- वे कल दिल्ली गए थे। (यह क्रिया पहले हो चुकी है)
- मैंने अपना होमवर्क किया था। (यह क्रिया पहले हो चुकी है)
- उसने हमें कहानी सुनाई थी। (यह क्रिया पहले हो चुकी है)
इन वाक्यों में "गए थे," "किया था," और "सुनाई थी" भूतकाल की क्रियाएं हैं क्योंकि ये सभी कार्य पहले हो चुके हैं।
3. भविष्यकाल (Future Tense): भविष्यकाल की क्रिया वह होती है जो भविष्य में होगी। यह क्रिया उस घटना या कार्य को दर्शाती है जो आने वाले समय में संपन्न होगी। यह समय के उस पल को दिखाती है जब क्रिया भविष्य में घटित होगी।
उदाहरण-
- मैं आज शाम को घर जाऊंगा। (यह क्रिया भविष्य में होगी)
- वह कल परीक्षा देगा। (यह क्रिया भविष्य में होगी)
- हम अगले सप्ताह छुट्टियों पर जाएंगे। (यह क्रिया भविष्य में होगी)
इन वाक्यों में "जाऊंगा," "देगा," और "जाएंगे" भविष्यकाल की क्रियाएं हैं क्योंकि ये सभी कार्य भविष्य में होने वाले हैं।
क्रियाओं को उनके समय के आधार पर तीन कालों में विभाजित किया जाता है: वर्तमान काल, जो क्रिया वर्तमान समय में हो रही है; भूतकाल, जो क्रिया पहले हो चुकी है; और भविष्यकाल, जो क्रिया भविष्य में होगी। इन कालों का उपयोग करके हम क्रिया के समय को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं।
वाच्य के आधार पर क्रियाएं-
वाच्य के आधार पर वाक्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: कर्मवाच्य, कर्तृवाच्य, और भाववाच्य। वाच्य का तात्पर्य वाक्य में किस तत्व को प्रमुखता दी गई है, उससे है।
1. कर्मवाच्य (Passive Voice): कर्मवाच्य वह वाक्य होता है जिसमें कर्म पर अधिक महत्व दिया जाता है। इस वाक्य में कार्य का परिणाम, यानी क्रिया का प्रभाव, कर्म पर होता है। इसमें कार्य करने वाले कर्ता का सीधा उल्लेख नहीं होता या होता है, तो वह गौण होता है। यह वाक्य उस स्थिति को दर्शाता है जिसमें कर्म मुख्य होता है और कर्ता अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
उदाहरण-
- चिट्ठी लिखी गई है। (यहाँ "चिट्ठी" कर्म है और इसे प्रमुखता दी गई है)
- खाना खाया गया। (यहाँ "खाना" कर्म है और इसे प्रमुखता दी गई है)
- पुस्तक पढ़ी गई। (यहाँ "पुस्तक" कर्म है और इसे प्रमुखता दी गई है)
इन वाक्यों में "लिखी गई है," "खाया गया," और "पढ़ी गई" क्रियाएं कर्मवाच्य हैं क्योंकि इनमें कार्य का मुख्य प्रभाव कर्म पर है।
2. कर्तृवाच्य (Active Voice): कर्तृवाच्य वह वाक्य होता है जिसमें कर्ता पर अधिक महत्व दिया जाता है। इस वाक्य में कार्य करने वाला व्यक्ति या वस्तु, यानी कर्ता, प्रमुख होता है और क्रिया उसके द्वारा संपन्न होती है। यह वाक्य उस स्थिति को दर्शाता है जिसमें कर्ता मुख्य होता है और कार्य उसके द्वारा किया जा रहा होता है।
उदाहरण-
- मोहन ने चिट्ठी लिखी। (यहाँ "मोहन" कर्ता है और इसे प्रमुखता दी गई है)
- सीता ने खाना बनाया। (यहाँ "सीता" कर्ता है और इसे प्रमुखता दी गई है)
- राम ने पुस्तक पढ़ी। (यहाँ "राम" कर्ता है और इसे प्रमुखता दी गई है)
इन वाक्यों में "लिखी," "बनाया," और "पढ़ी" क्रियाएं कर्तृवाच्य हैं क्योंकि इनमें कार्य का मुख्य प्रभाव कर्ता पर है और कर्ता कार्य को कर रहा है।
3. भाववाच्य (Impersonal Voice): भाववाच्य वह वाक्य होता है जिसमें भाव या स्थिति पर अधिक महत्व दिया जाता है। इस वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों का सीधा उल्लेख नहीं होता बल्कि क्रिया के माध्यम से भाव या स्थिति का बोध होता है। यह वाक्य उस स्थिति को दर्शाता है जिसमें भाव मुख्य होता है और कर्ता और कर्म गौण होते हैं।
उदाहरण-
- मुझे भूख लग रही है। (यहाँ स्थिति "भूख लगना" मुख्य है)
- उसे नींद आ रही है। (यहाँ स्थिति "नींद आना" मुख्य है)
- हमें ठंड लग रही है। (यहाँ स्थिति "ठंड लगना" मुख्य है)
इन वाक्यों में "भूख लग रही है," "नींद आ रही है," और "ठंड लग रही है" क्रियाएं भाववाच्य हैं क्योंकि इनमें मुख्यता भाव या स्थिति पर है और कर्ता या कर्म गौण हैं।
वाच्य के आधार पर वाक्यों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है: कर्मवाच्य, जिसमें कर्म प्रमुख होता है; कर्तृवाच्य, जिसमें कर्ता प्रमुख होता है; और भाववाच्य, जिसमें भाव या स्थिति प्रमुख होती है। इन वाच्यों का उपयोग करके हम वाक्य में किस तत्व को अधिक महत्व देना है, यह निर्धारित कर सकते हैं।
क्रिया के रूप
क्रिया के कई रूप होते हैं जो विभिन्न प्रयोजनों और संदर्भों के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन रूपों का उपयोग क्रिया की स्थिति, काल, और प्रकार को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है। क्रिया के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं:
1. मूल रूप (Root Form): मूल रूप क्रिया का सबसे सरल और आधारभूत रूप होता है, जिसमें कोई प्रत्यय नहीं होता है। यह रूप क्रिया के मूल अर्थ को दर्शाता है और यह किसी भी परिवर्तन या संशोधन के बिना होता है।
उदाहरण-
- पढ़ (पढ़ना क्रिया का मूल रूप)
- लिख (लिखना क्रिया का मूल रूप)
- खा (खाना क्रिया का मूल रूप)
इन वाक्यों में "पढ़," "लिख," और "खा" क्रियाओं के मूल रूप हैं जो बिना किसी प्रत्यय के अपनी सरलतम स्थिति में हैं।
2. सामान्य रूप (Infinitive Form): सामान्य रूप क्रिया का वह रूप होता है जो मूल रूप में "ना" प्रत्यय जोड़कर बनता है। यह रूप क्रिया के सामान्य और स्थायी रूप को दर्शाता है और अक्सर इसका उपयोग क्रिया के अनिर्धारित या सामान्य रूप में किया जाता है।
उदाहरण-
- पढ़ना (मूल रूप "पढ़" + प्रत्यय "ना")
- लिखना (मूल रूप "लिख" + प्रत्यय "ना")
- खाना (मूल रूप "खा" + प्रत्यय "ना")
इन वाक्यों में "पढ़ना," "लिखना," और "खाना" सामान्य रूप की क्रियाएं हैं जो क्रिया के अनिर्धारित या सामान्य रूप को दर्शाती हैं।
3. विशेषण रूप (Adjectival Form): विशेषण रूप क्रिया का वह रूप होता है जो क्रिया में "ता" या "ना" प्रत्यय जोड़कर बनता है। यह रूप क्रिया को विशेषण के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे यह किसी व्यक्ति, वस्तु, या स्थिति की विशेषता को दर्शाता है।
उदाहरण-
- पढ़ने योग्य (मूल रूप "पढ़" + प्रत्यय "ने" + योग्य)
- लिखने लायक (मूल रूप "लिख" + प्रत्यय "ने" + लायक)
- खाने योग्य (मूल रूप "खा" + प्रत्यय "ने" + योग्य)
इन वाक्यों में "पढ़ने योग्य," "लिखने लायक," और "खाने योग्य" विशेषण रूप की क्रियाएं हैं जो किसी कार्य की क्षमता या योग्यता को दर्शाती हैं।
4. अव्यय रूप (Adverbial Form):
अव्यय रूप क्रिया का वह रूप होता है जो क्रिया में "कर" या "करके" प्रत्यय जोड़कर बनता है। यह रूप क्रिया को अव्यय के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे यह कार्य के प्रकार, समय, स्थान, या स्थिति को दर्शाता है।
उदाहरण-
- पढ़कर (मूल रूप "पढ़" + प्रत्यय "कर")
- लिखकर (मूल रूप "लिख" + प्रत्यय "कर")
- खाकर (मूल रूप "खा" + प्रत्यय "कर")
इन वाक्यों में "पढ़कर," "लिखकर," और "खाकर" अव्यय रूप की क्रियाएं हैं जो कार्य के प्रकार, समय, या स्थिति को दर्शाती हैं।
क्रिया के विभिन्न रूप उनके उपयोग और संदर्भ के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। मूल रूप क्रिया का सबसे सरल और आधारभूत रूप होता है, जबकि सामान्य रूप क्रिया के अनिर्धारित या सामान्य रूप को दर्शाता है। विशेषण रूप क्रिया को विशेषण के रूप में प्रस्तुत करता है, और अव्यय रूप क्रिया को अव्यय के रूप में प्रस्तुत करता है। इन रूपों का उपयोग करके हम क्रिया की स्थिति, काल, और प्रकार को स्पष्ट कर सकते हैं।
क्रिया के प्रयोग
क्रिया का प्रयोग वाक्य में विभिन्न प्रकार से किया जाता है, जो वाक्य की संरचना और अर्थ को स्पष्ट करने में सहायक होता है। क्रिया के प्रयोग के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं:
1. मुख्य क्रिया (Main Verb):
मुख्य क्रिया वह क्रिया होती है जो वाक्य का मुख्य अर्थ प्रदान करती है। यह क्रिया वाक्य का केंद्रीय तत्व होती है और इसके बिना वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता। मुख्य क्रिया वाक्य के कर्ता द्वारा किए जा रहे मुख्य कार्य को दर्शाती है।
उदाहरण-
- मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। (यहाँ "पढ़ रहा है" मुख्य क्रिया है)
- राधा खाना बना रही है। (यहाँ "बना रही है" मुख्य क्रिया है)
- राम खेल रहा है। (यहाँ "खेल रहा है" मुख्य क्रिया है)
इन वाक्यों में "पढ़ रहा है," "बना रही है," और "खेल रहा है" मुख्य क्रियाएं हैं जो वाक्य के मुख्य अर्थ को स्पष्ट कर रही हैं।
2. सहायक क्रिया (Auxiliary Verb):
सहायक क्रिया वह क्रिया होती है जो मुख्य क्रिया को बनाने में सहायता करती है। यह क्रिया मुख्य क्रिया के साथ मिलकर वाक्य को समय, प्रकार, या स्थिति के अनुसार स्पष्ट करती है। सहायक क्रिया वाक्य में मुख्य क्रिया के साथ प्रयोग होकर उसके अर्थ को पूर्णता प्रदान करती है।
उदाहरण-
- मैंने पुस्तक पढ़ी है। (यहाँ "है" सहायक क्रिया है जो "पढ़ी" मुख्य क्रिया को पूरा कर रही है)
- वह जा रहा है। (यहाँ "रहा है" सहायक क्रिया है जो "जा" मुख्य क्रिया को पूरा कर रही है)
- हम काम कर चुके हैं। (यहाँ "चुके हैं" सहायक क्रिया है जो "कर" मुख्य क्रिया को पूरा कर रही है)
इन वाक्यों में "है," "रहा है," और "चुके हैं" सहायक क्रियाएं हैं जो मुख्य क्रिया के साथ मिलकर वाक्य का अर्थ स्पष्ट कर रही हैं।
3. पूर्वकालिक क्रिया (Preceding Action Verb):
पूर्वकालिक क्रिया वह क्रिया होती है जो मुख्य क्रिया के पहले होती है। यह क्रिया उस कार्य को दर्शाती है जो मुख्य क्रिया से पहले संपन्न हुआ हो। पूर्वकालिक क्रिया वाक्य में क्रियाओं के क्रम को स्पष्ट करती है।
उदाहरण-
- खाना खाकर वह सोने गया। (यहाँ "खाना खाकर" पूर्वकालिक क्रिया है जो "सोने गया" मुख्य क्रिया से पहले हुई)
- पत्र लिखकर उसने उसे भेज दिया। (यहाँ "पत्र लिखकर" पूर्वकालिक क्रिया है जो "भेज दिया" मुख्य क्रिया से पहले हुई)
- नाश्ता करके वह काम पर चला गया। (यहाँ "नाश्ता करके" पूर्वकालिक क्रिया है जो "काम पर चला गया" मुख्य क्रिया से पहले हुई)
इन वाक्यों में "खाना खाकर," "पत्र लिखकर," और "नाश्ता करके" पूर्वकालिक क्रियाएं हैं जो मुख्य क्रिया से पहले हुई क्रियाओं को दर्शाती हैं।
4. उत्तरकालिक क्रिया (Subsequent Action Verb):
उत्तरकालिक क्रिया वह क्रिया होती है जो मुख्य क्रिया के बाद होती है। यह क्रिया उस कार्य को दर्शाती है जो मुख्य क्रिया के बाद संपन्न हुआ हो। उत्तरकालिक क्रिया वाक्य में क्रियाओं के क्रम को स्पष्ट करती है।
उदाहरण-
- पढ़ाई खत्म करके वह खेलने गया। (यहाँ "पढ़ाई खत्म करके" मुख्य क्रिया है और "खेलने गया" उत्तरकालिक क्रिया है)
- काम निपटाकर वह आराम करने लगा। (यहाँ "काम निपटाकर" मुख्य क्रिया है और "आराम करने लगा" उत्तरकालिक क्रिया है)
- खाना खाकर उसने टीवी देखा। (यहाँ "खाना खाकर" मुख्य क्रिया है और "टीवी देखा" उत्तरकालिक क्रिया है)
इन वाक्यों में "पढ़ाई खत्म करके," "काम निपटाकर," और "खाना खाकर" उत्तरकालिक क्रियाएं हैं जो मुख्य क्रिया के बाद हुई क्रियाओं को दर्शाती हैं।
क्रिया का प्रयोग वाक्य में विभिन्न प्रकार से किया जाता है, जो वाक्य की संरचना और अर्थ को स्पष्ट करने में सहायक होता है। मुख्य क्रिया वाक्य का मुख्य अर्थ प्रदान करती है, सहायक क्रिया मुख्य क्रिया को समय, प्रकार, या स्थिति के अनुसार स्पष्ट करती है, पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया से पहले की क्रिया को दर्शाती है, और उत्तरकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के बाद की क्रिया को दर्शाती है। इन प्रयोगों का उपयोग करके हम वाक्य को अधिक सटीक और स्पष्ट बना सकते हैं।
क्रिया के अन्य महत्वपूर्ण पहलू
क्रिया, वाक्य का एक अनिवार्य तत्व है, जो न केवल कार्य या घटना को दर्शाती है बल्कि कर्ता और अन्य पहलुओं के अनुसार बदलती रहती है। यहाँ क्रिया के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की जा रही है:
1. लिंग और वचन (Gender and Number)
क्रिया का रूप वाक्य में कर्ता के लिंग (पुल्लिंग/स्त्रीलिंग) और वचन (एकवचन/बहुवचन) के अनुसार बदलता है। इससे वाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है और यह दर्शाता है कि क्रिया किस प्रकार की है और कौन इसे कर रहा है।
उदाहरण-
- वह लड़का दौड़ रहा है। (यहाँ "दौड़ रहा है" पुल्लिंग और एकवचन है, जो एक लड़के द्वारा किए जा रहे कार्य को दर्शाता है)
- वे लड़कियाँ दौड़ रही हैं। (यहाँ "दौड़ रही हैं" स्त्रीलिंग और बहुवचन है, जो कई लड़कियों द्वारा किए जा रहे कार्य को दर्शाता है)
इन वाक्यों में क्रिया का रूप कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार बदल रहा है, जिससे वाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है।
2. प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb):
प्रेरणार्थक क्रिया वह क्रिया होती है जो किसी को कोई कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। यह क्रिया यह दर्शाती है कि कर्ता किसी अन्य व्यक्ति को किसी कार्य के लिए प्रेरित कर रहा है।
उदाहरण-
- माँ बेटे को पढ़ने के लिए कहती हैं। (यहाँ "कहती हैं" प्रेरणार्थक क्रिया है, जो माँ द्वारा बेटे को पढ़ने के लिए प्रेरित करने का कार्य दर्शा रही है)
- शिक्षक छात्रों को अभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं। (यहाँ "प्रेरित करते हैं" प्रेरणार्थक क्रिया है, जो शिक्षक द्वारा छात्रों को अभ्यास करने के लिए प्रेरित करने का कार्य दर्शा रही है)
इन वाक्यों में "कहती हैं" और "प्रेरित करते हैं" प्रेरणार्थक क्रियाएं हैं जो कर्ता द्वारा किसी को कार्य करने के लिए प्रेरित करने का भाव व्यक्त करती हैं।
3. निषेधात्मक क्रिया (Negative Verb):
निषेधात्मक क्रिया वह क्रिया होती है जो किसी कार्य को न करने का बोध कराती है। यह क्रिया वाक्य में निषेध या रोक का भाव व्यक्त करती है।
उदाहरण-
- बच्चे बाहर नहीं खेल रहे हैं। (यहाँ "नहीं खेल रहे हैं" निषेधात्मक क्रिया है, जो यह दर्शा रही है कि बच्चे बाहर खेल नहीं रहे हैं)
- राम ने आज काम नहीं किया। (यहाँ "नहीं किया" निषेधात्मक क्रिया है, जो यह दर्शा रही है कि राम ने आज काम नहीं किया)
इन वाक्यों में "नहीं खेल रहे हैं" और "नहीं किया" निषेधात्मक क्रियाएं हैं जो कार्य के निषेध या रोक को व्यक्त करती हैं।
4. क्रियाओं का समूह (Verb Group):
कभी-कभी एक वाक्य में एक से अधिक क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें क्रिया समूह के रूप में जाना जाता है। क्रिया समूह मिलकर वाक्य को पूरा अर्थ प्रदान करते हैं।
उदाहरण-
- मोहन पुस्तक पढ़कर सो गया। (यहाँ "पढ़कर" और "सो गया" क्रिया समूह बनाते हैं)
- सीता खाना बनाकर खा रही है। (यहाँ "बनाकर" और "खा रही है" क्रिया समूह बनाते हैं)
- राम दौड़कर घर आ गया। (यहाँ "दौड़कर" और "आ गया" क्रिया समूह बनाते हैं)
इन वाक्यों में "पढ़कर" और "सो गया," "बनाकर" और "खा रही है," और "दौड़कर" और "आ गया" क्रिया समूह बनाते हैं जो वाक्य को पूरा अर्थ प्रदान करते हैं।
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